टीबी (यक्ष्मा या क्षय रोग)
यक्ष्मा या क्षय रोग क्या है— इस शब्द का अर्थ है-क्षय हो जाना या गल जाना। यही होता है, वास्तव में इस रोग में, जहाँ का भी क्षय रोग हो वह हिस्सा क्षय हो जाता है, खोखला हो जाता है, खराब हो जाता है।
रोग लक्षण – रोगी को खाँसी रहना, दिन-रात बुखार बने रहना और शाम को बुखार बढ़ना, भूख की कमी, छाती में दर्द, साँस लेने में कष्ट, दुर्बलता और शरीर की क्षीणता बढ़ते जाना, पीला सादा बहुतायत में कफ, , कभी-कभी कफ में रक्त आना, खाँसी से स्वर-नली में घाव होकर आवाज बैठ जाना, रात को पसीना आना यक्ष्मा के लक्षण हैं।
यह बीमारी बड़ों से अधिक बच्चों में पायी जाती है। बच्चों के नाजुक फेफड़े व कोमल श्वास नलियाँ, टी.बी. जीवाणुओं के लिए आश्रय स्थल हैं। बच्चों में टी.बी. के लक्षण वयस्कों से भिन्न नहीं हैं। कई बार तो भूख न लगना, वजन गिरना, शीघ्र थकावट, हल्का बुखार, , गिरी पड़ी तबीयत ही केवल मात्र लक्षण होते हैं। बार-बार जुखाम, खाँसी व साँस की बीमारी होने वाले बच्चों में टी.बी. का निदान आवश्यक है। गले में गाँठें (कंठमाला) बच्चों में टी.बी. का विशेष लक्षण है।
शरीर के प्रभावित अंग
सबसे अधिक टी.बी. का असर फेफड़ों पर होता है। अन्य प्रभावित होने वाले अंगों में हड्डियाँ, आँतें, टांसिल्स, चमड़ी, गुर्दे व प्रजनन अंग सम्मिलित हैं।
चाहे शरीर का कोई भी हिस्सा प्रभावित हो, सामान्य लक्षण एक से होते हैं। हरारत, हल्का सायंकालीन बुखार, भूख कम, वजन गिरना, टी.बी. के सामान्य लक्षण हैं।
फेफड़ों की टी.बी. में खाँसी, बलगम आना, छाती दर्द, साँस में दिक्कत, खाँसी के साथ खून आना प्रमुख लक्षण हैं। आँतों की टी.बी. में पेट में गैस का गोला बनना, बदहजमी, पेट फूलना, खास लक्षण हैं। सन्तानहीनता का प्रमुख कारण बदहजमी, पेट फूलना, स्त्रियों में बच्चेदानी की टी.बी. खास लक्षण हैं। गुदर्दों की टी.बी. में पेशाब में खून आना और गुर्दों में सूजन आना खास संकेत हैं।
बी.सी.जी. का टीका एक बार लगवाने से जीवन भर टी.बी. से बचाव होता है। यह टीका एक दिन की उम्र के शिशु से लेकर जीवन भर कभी भी लगाया जा सकता है।
यह रोग यक्ष्मा, राजयक्ष्मा, तपेदिक, क्षय, ट्यूबरकुलोसिस आदि अनेक नामों से व्यक्त किया जाता है। वर्षों रोग भोगते-भोगते शरीर हड्डियों का कंकाल मात्र रह कर अन्त में रोग ठीक न हो तो रोगी मर जाता है। एक्स-रे कराने से इस रोग का पता लग जाता है।
कारण
टी.बी. के टुबरकिल बैसीलस नामक जीवाणु रोगी के कफ या थूक में होते हैं, जिनसे यह रोग हवा, पानी, दूध द्वारा फैलता है। दूषित हवा, गीले स्थान, साँस के साथ धूल कण जाना, अधिक स्त्री-प्रसंग, अपुष्टकर भोजन, शक्ति से ज्यादा मेहनत, अधिक सन्तान के जन्म देना, शराब पीना, टी.बी. के रोगी के साथ आहार-विहार आदि कारणों से यह रोग फैलता है।
चिकित्सा- क्षय रोग के उपचार में सबसे मुख्य बात यह है कि दवा एक दिन भी नहीं छोड़नी चाहिए, अधिकतर रोगी डेढ़ दो माह बाद जब क्षय रोग के लक्षण समाप्त होने लगते हैं, तब दवा लेना बंद कर देते हैं। इसीलिए धीरे-धीरे आगे चलकर ऐसे रोगियों में कई जटिलताएँ पैदा हो जाती हैं व कई बार ये जानलेवा साबित हो सकती हैं। चिकित्सक के बताए अनुसार नियमित रूप से निर्धारित समय तक इलाज सुचारु रूप से किया जाए तो रोग से पूरी तरह छुटकारा मिल जाता है व बीमारी जड़ से खतम हो जाती है।
टी.बी. के रोगी के भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए, बल्कि भोजन को ही चिकित्सा — समझना चाहिए। सूर्य का प्रकाश, स्वच्छ हवा, पौष्टिक भोजन एवं पूर्ण विश्राम मिलना रोगी के लिए आवश्यक है। स्त्री-प्रसंग और धूम्रपान से सख्त परहेज रखना चाहिए। संयमी जीवन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। टी.बी. के रोगियों को यहाँ वर्णित चीजें देने से बहुत लाभ होता है
टीबी रोग के घरेलू उपाय – TB ke gharelu upay in hindi
शक्कर – अमरीकी वैज्ञानिक टिलबर्ट के अनुसार शक्कर को जलाने से क्षय, हैजा एवं चेचक आदि रोगों के कीटाणु समाप्त हो जाते हैं।
दूध- एक गिलास दूध में 5 पीपल डाल कर उबालें और फिर ठंडा होने पर शक्कर डालकर नित्य सुबह-शाम पीयें। इससे खाँसी, जुकाम, दमा, फेफड़े की कमजोरी, आरम्भिक टी.बी. में लाभ होता है।
मक्खन – यक्ष्मा रोग में मक्खन, मिश्री में घी मिलाकर खाने से क्षय रोग का नाश होकर बल मिलता है।
नीबू – यक्ष्मा में जिन्हें लगातार ज्वर रहता हो, उन्हें 11 पत्ती तुलसी, नमक, जीरा, हींग, एक गिलास गरम पानी में नीबू का रस 25 ग्राम मिलाकर तीन बार कुछ दिन पीना चाहिए।
सेब- सेब खाना यक्ष्मा में लाभदायक है। आँतों, यकृत और मस्तिष्क के लिए लाभदायक है।
आम- एक कप आमरस में 60 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम दो बार नित्य पीयें। नित्य तीन बार गाय का दूध पीयें। इस प्रकार 21 दिन करने से यक्ष्मा में लाभ होता है।
अंगूर- यक्ष्मा में भोजन के रूप में अंगूर का सेवन करना चाहिए।
मुनक्का– मुनक्का, पीपल, देशी शक्कर—ये तीनों समान भाग पीस कर एक चम्मच सुबह-शाम खाने से यक्ष्मा (टी.बी.), श्वास, खाँसी जाती है।
नारियल – नित्य 25 ग्राम कच्चा नारियल खाने से या पीस कर पीने से यक्ष्मा के कीटाणुओं का नाश होता है तथा फेफड़ों को बल मिलता है।
खजूर- आठ खजूर दो बार खाना क्षय रोगियों के लिए लाभदायक है। लौंग-लौंग क्षय रोग का नाश करने वाली है। यह भोजन के बाद लें।
गाजर – टी.बी. में गाजर का रस पीना लाभदायक है, इसमें भोजन के सन्तुलित तत्त्व होते है।
केला- केले के पेड़ का ताजा रस या सब्जी बनाने वाला कच्चा केला क्षय रोग को दूर करने में रामबाण है। जिसे क्षय रोग हो चुका हो, कष्टदायक खाँसी होती हो, जिसमें अधिक मात्रा में बलगम निकलता हो रात को इतना पसीना आता हो कि सब कपड़े भीग जायें, साथ ही बहुत तेज बुखार रहता हो, दस्त आते हों, भूख न लगती हो, वजन भी गिर चुका हो, उनको केले के मोटे तने के टुकड़े का रस निकाल और छानकर एक-दो ताजा कप रस हर दो घण्टे बाद घूँट करके पिलाया जाये। तीन दिन रस बराबर पिलाने से रोगी को बहुत लाभ होगा। दो माह तक इस चिकित्सा से क्षय रोग से छुटकारा मिल सकता है। केले का रस हर 24 घण्टे के बाद ताज ही निकालना चाहिए। 8-10 केले के पत्ते 200 मिली लीटर पानी में डालकर पड़ा रहने दें। इस पानी को छानकर एक बड़ा चम्मच दिन में तीन बार पिलाते रहने से फेफड़ों में जमी गाढ़ी बलगम पतली होकर निकल जाती है। केले के पत्ते का रस मधु में मिलाकर क्षय रोगी को पिलाते रहने से भी उसके फेफड़ों के घाव भर जाते हैं। बलगम कम हो जाता है और फेफड़ों के घाव भर जाते हैं। बलगम कम हो जाता है और फेफड़ों से खून आना रुक जाता है। केले के तने न हो तो केले के पत्तों का रस इसी प्रकार काम में ले सकते हैं।
प्याज- यक्ष्मा के लिए बहुत सालों पहले इंगलैण्ड के डॉ. पर्स कच्चा प्याज बताया करते थे। डॉ. डब्ल्यू.सी. मिनचेन ने कहा है कि शरीर पर यक्ष्मा के कीटाणुओं के आक्रमण को प्याज का रस नष्ट कर देता है। कच्चे प्याज को खाने से भी समान प्रभाव होता है। यह स्वास्थ्यरक्षक, कीटाणुनाशक है। कच्चे प्याज पर नमक डालकर खाने से यक्ष्मा में लाभ होता है।
यक्ष्मा रोग में बलगम आना बन्द करने के लिये चौथाई कप प्याज का रस इतना ही पानी मिला कर पीयें। छोटे-छोटे टुकड़े करके एक गिलास पानी में डाल कर उबालें। आधा पानी रहने पर छान कर पिलायें। बलगम आना बन्द हो जायेगा।
लहसुन — डॉ. ई. पी. एन्शूज होम्योपैथ ने लिखा है कि लहसुन खाने वालों को क्षय रोग नहीं होता। इसके प्रयोग से क्षय के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। क्षय रोग के लिए लहसुन एक वरदान है। हर प्रकार के क्षय को दूर करने के लिए लहसुन अमृत से कम नहीं है। लहसुन में सल्फ्यूरिक एसिड अच्छी मात्रा में होता है, जो क्षय के कीटाणुओं को नष्ट करता है।
फेफड़े के क्षय में लहसुन के प्रयोग से कफ गिरना कम होता है रात को निकलने वाले पसीने को रोकता है, भूख बढ़ाता है और नींद सुखपूर्वक लाता है। फेफड़े में क्षय होने पर लहसुन रस से रुई तर करके सूँघना चाहिए ताकि श्वास के साथ मिलकर इसकी गन्ध फेफड़ों तक पहुँच जाय। इसे बहुत देर तक सूँघते रहना चाहिए। इसकी तीव्र गन्ध ही है, जो प्रबल-से-प्रबल कीटाणुओं, कृमियों तथा असाध्य रोगों को मिटाती है। खाना खाने के बाद लहसुन का सेवन भी करना चाहिए।
आन्त्र क्षय में लहसुन का रस आठ बूँद 12 ग्राम पानी में पिलायें।
फूलगोभी- फूलगोभी की सब्जी खाने से या कच्ची ही खाने से रक्त की उलटी होना बन्द हो जाता है। क्षय रोगी इसे लें।
लौकी- ताजा लौकी पर जौ के आटे का लेप करें तथा कपड़ा लपेटकर भोभल (आग) में दबा दें। जब भुर्ता हो जाये तो पानी निचोड़ कर शक्ति अनुकूल पिलाते रहें। एक महीने पिलाने से रोगी यक्ष्मा से ठीक हो जायेगा।
मक्का- जिसे यक्ष्मा का पूर्व रूप हो उसे मक्का की रोटी खानी चाहिए।
अखरोट—अखरोट और लहसुन समान मात्रा में पीसकर गाय के घी में भूनकर सेवन करने से यक्ष्मा में लाभ होता है।
शहद- 25 ग्राम शहद, 100 ग्राम मक्खन में मिलाकर देना चाहिए।
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