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पठवन (Leguminosae) के फायदे एंव औषधीय गुण

पठवन (Leguminosae) के फायदे एंव औषधीय गुण
पठवन (Leguminosae) के फायदे एंव औषधीय गुण

पठवन (Leguminosae)

प्रचलित नाम- पठवन ।

उपयोगी अंग- पंचांग ।

परिचय- एक उन्नत क्षुप या गुल्म जो 2-3 फुट ऊंचा रहता है। पत्र भिन्न पत्री, इनमें तल प्रदेश के पत्ते छोटे (3-6 पत्रिका) आगे की तरफ के बड़े (पत्रिकाएं 5-6), पत्ते का मध्य भाग पीतवर्ण पट्टे युक्त होता है।

फूल- 3-6 इंच लंबा किन्तु रक्तवर्णी ।

स्वाद- तीखा, मधुर रसयुक्त ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

दीपन, वातहर, विपर्यय, बल्य, शोथघ्न, जीवाणुनाशक। यह अतिसार, खांसी, विषम बुखार, उन्माद, व्रण, दाह, आमवात रक्तार्श, प्रतिश्यायहर, वमनहर, तृषाशामक है। आमवात और अतिसार में मूल तथा पत्रों के क्वाथ से सेवन से फायदा सर्प विष में इसके पंचांग का स्वरस देने से लाभ होता है। रक्तार्श में इसके पंचांग का क्वाथ पिला देना चाहिए। रक्तार्श काफी तकलीफदेह बीमारी रहती है। इसमें अर्श (बवासीर) के मस्सों से काफी मात्रा में खून निकल जाता है। जिससे शरीर में कमजोरी आ जाना स्वाभाविक है। इसका क्वाथ शरीर से अलावा गर्मी निकालकर आर्श को ठीक करता है। जीर्ण वातरक्त में पृश्रिपर्णी स्वरस 500 मि.ली. तेल 200 मि.ली. और बकरी दुग्ध 400 मि.ली., पानी 200 मि.ली. में पृश्रिपर्णी मूल की पेया सिद्ध करके पिलानी चाहिए। अस्थि भग्न में पृश्रिपर्णी के मूल का चूर्ण मांस रस से तीन सप्ताह तक पिलाने से अस्थियों का संधान हो जाता है।

मात्रा – पंचांग का चूर्ण-आधा तोला से एक तोला ।

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