पेचिश (Dysentery)
पेचिश का अन्य नाम आमातिसार, रक्तातिसार भी है। इसके रोगी को भूख कम और दुर्बलता प्रतीत होती है। प्रारम्भ में बार-बार कम मात्रा में दस्त, पेट में ऐंठन की पीड़ा, मल के साथ सफेद चिकना पदार्थ (Mucus) निकलता है, परन्तु धीरे-धीरे दस्तों की संख्या बढ़ जाती है। रक्त भी साथ में आने लगता है। दस्त जाते समय पेट में दर्द होता है। इसके रोगी को आराम करना चाहिए। पेचिश का मुख्य कारण इलियम के निचले हिस्से त बड़ी आँत में प्रदाह होता है।
पेचिश के प्रकार
पेचिश दो प्रकार की होती है-
1. दण्डाणुका पेचिश (Bacillary Dysentery)
रोगी को बार-बार दस्त जाने की इच्छा होती है। दस्त में रक्त का अंश अधिक होता है, कभी-कभी ऐसा लगता है मानों केवल रक्त ही रह गया है। दिन में 20-30 दस्त हो जाते हैं और कभी-कभी ज्वर भी हो जाता है। यह शीघ्र ठीक हो जाती है। होम्योपैथिक दवा मर्क कोर 30 एक ड्राम गोलियाँ लेकर दस-दस गोली, पाँच बार चूसने से शीघ्र ही रोगी ठीक हो जाता है।
2. अमीबिक पेचिश (Amoebic Dysentery )
यह Entamoeba Histolytia नामक कीटाणु से होती है। गन्दे खान-पान से यह कीटाणु अंतड़ियों में चला जाता है और वहाँ प्रदाह पैदा करता है। यह पुराना रूप धारण करती जाती है जिसे ठीक करना कठिन रहता है लेकिन भोजन के द्वारा चिकित्सा इसे ठीक कर देती है। इसमें दस्त लगते हैं। 24 घण्टे में 2-4 से लेकर 8-10 दस्त आ जाते हैं। दस्त मात्रा में बढ़ा, ढीला-सा और तुरन्त मल-त्याग की इच्छा होती है। दस्त में आँव, रक्त या दोनों मिश्रित रहते हैं। रक्त मिश्रित रहने से दस्त पतला और ढीला में भी हो जाता है। कुछ में रक्तातिसार (Melaena) का ही लक्षण विशेष होता है और कुछ में कब्ज । दस्तों के अलावा भोजन से अरुचि, आफरा, पेट दर्द या बेचैनी-सी रहती है। श्रम करने से थकान, चक्कर आते हैं। इस रोग के कारण श्वास रोग, पामा (Eczema), यकृत में शोथ, घाव भी हो सकता है।
पेचिश के घरेलू उपाय
पेचिश में दस्त बन्द करने की दवा नहीं देनी चाहिए। दस्त के साथ आँव (Mucus) आता है जो एक प्रकार का जहर है। यदि पेट में आँव के दस्त रोक दिये तो हाथ, पैर, मुँह पर सूजन, पीलिया, यकृत, तिल्ली की खराबी, कोढ़, भूख कम लगना, मन्द ज्वर, जलोदर आदि अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन रोगों की चिकित्सा करते समय आँव दस्त होने का इतिहास पूछना चाहिए और आँव दबाई गई हो तो आँव निकालने की चिकित्सा करनी आवश्यक है। आँतों में बहुत-सा मल जमा होने से पेचिश होती है। प्रकृति इस मल को निकाल कर पेट साफ करना चाहती है। अतः प्रकृति की सहायता करनी चाहिए।
एरण्ड या रेंडी का तेल (Castor Oil)—पेचिश में आँव के दस्त होते ही दो चम्मच एरण्ड का तेल रात को गर्म दूध में मिलाकर पीयें। शीघ्र लाभ होगा। एरण्ड का तेल आँव और रक्त दोनों प्रकार के दस्तों में लाभ करता है।
बेल—पके बेल का शर्बत पुराने आँव के लिए सफल चिकित्सा है। इससे पेट साफ रहता है।
पानी–अमोबाइसिस होने पर एक गिलास गर्मागर्म पानी खाने के बाद नित्य पीयें। ईसबगोल—यह अमीबिक पेचिश के लिए बहुत लाभदायक है। आँव को बाहर निकाल कर बनना बन्द कर देती है।
(1) दो चाय की चम्मच ईसबगोल गर्म दूध में फुलाकर रात्रि को सेवन करें। प्रातः दही में भिगोकर फुला कर उसमें नमक, सौंठ, जीरा मिलाकर पीयें।
(2) ईसबगोल 4 भाग, सौंफ आधा भुना आधा कच्चा एक भाग, मिश्री एक भाग-सबको पीसकर सुबह-शाम पानी में दो-दो चम्मच लें।
(3) एक चम्मच ईसबगोल एक कप पानी में कम-से-कम 6 घण्टे भिगोयें। भोजन करने के अन्त में इसे खाकर हाथ-मुँह धोयें। दूसरे समय के भोजन के लिए इसी समय पुनः भिगो दें और इसी प्रकार लें।
(4) यदि संख्या 3 में बताये अनुसार करना सम्भव न हो तो 75 ग्राम ईसबगोल, 25 ग्राम भुनी हुई सौंफ, 25 ग्राम कच्ची सौंफ-इन तीनों को पीसकर एक चम्मच नित्य पानी से भोजन के बाद लें। इससे समस्त जीवन आराम से बीतेगा। यह लम्बे समय तक करते रहना पड़ेगा।
(5) सौंफ आधी कच्ची, आधी मात्रा सेकी हुई, धनिया सूखा, मिश्री, बेलगिरी—ये चारों समान मात्रा, सौंठ चौथाई मात्रा सबको साफ करके कंकर निकालकर पीस लें। इसकी दो चम्मच तीन बार ठंडे पानी से लेने से पेचिश, दस्त, दस्त के साथ रक्त आना ठीक हो जाता है। अमोबाइसिस में भी लाभदायक है।
नीबू-एक कप ताजा पानी में नीबू निचोड़कर दिन में तीन बार पीने से पेचिश में लाभ होता है। दूध में नीबू निचोड़कर पीने से भी लाभ होता है।
मेथी – (1) मेथी के पत्तों को घी में तल कर खाने से आमातिसार मिटता है।
(2) मेथी के पत्तों का रस 60 ग्राम और शक्कर 6 ग्राम मिला कर पीनी चाहिए या दानामेथी को पीसकर एक चम्मच दही में मिलाकर खायें। चावल–पेचिश के रोगियों के लिए चावल उत्तम खाद्य है।
गेहूँ— दस्त, ,आमातिसार में सौंफ को पीसकर पानी में मिलाकर, छानकर इस सौंफ के पानी में गेहूँ का आटा ओषण कर रोटी बनाकर खाने से लाभ होता है।
सौंफ-छोटे बच्चों के पतले दस्त, पेचिश में 6 ग्राम सौंफ, 82 ग्राम पानी में उबालें, जब पानी आधा रह जाय तब उसमें एक ग्राम काला नमक डालकर पिलायें। बच्चों को 12 ग्राम पानी दिन में तीन बार देने से बहुत लाभ होता है।
काली मिर्च – पेचिश में काली मिर्च खाने से लाभ होता है।
तुलसी–तुलसी की पत्ती को शक्कर के साथ खिलाने से पेचिश दूर हो जाती है।
अनार – 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग-इन दोनों को पीसकर एक गिलास पानी में उबालें फिर छानकर आधा-आधा कप नित्य तीन बार पीएँ। जिन व्यक्तियों के पेट में आँव की शिकायत बनी रही है या डिसेन्ट्री या संग्रहणी रोग की शिकायत रहती है उन्हें इसका नियमित सेवन लाभकारी होता है।
खजूर-खजूर और दही खाने से लाभ होता है।
भिण्डी–पेचिश में भिण्डी की सब्जी खाना लाभदायक है। इससे आँतों की खराश दूर होती है।
चना-दो मुट्ठी चने का छिल्का दो गिलास पानी में मिट्टी के कोरे बर्तन में रात को भिगोएँ, चना यह पानी छानकर प्रात: पीयें। जलन व गर्मी के कारण दस्तों में रक्त आता हो तो ठीक हो जायेगा ।
खसखस – दो चम्मच खसखस में पानी डालकर पीस कर चौथाई कप दही में मिलाकर नित्य दो बार छ: घण्टे के अन्तर से खाने से पेचिश, दस्त, मरोड़ ठीक होते हैं। खसखस की खीर बनाकर खाने से भी लाभ होता है।
फिटकरी-फिटकरी 20 ग्राम, अफीम तीन ग्राम पीसकर मिला लें। सवेरे-शाम इस चूर्ण की दाल के बराबर मात्रा दो चम्मच पानी के साथ पिलाएँ, इससे दस्तों में लाभ होगा। फिर तीन घण्टे बाद ईसबगोल की भूसी के साथ दें तो पेचिश बन्द हो जायेगी। खून आना बन्द हो जायेगा।
जीरा – पुरानी पेचिश एवं संग्रहणी में जीरा सेक कर पीसकर एक चम्मच लेकर एक चम्मच शहद में मिलाकर खाना खाने के बाद नित्य चाटें। छाछ में जीरा डाल कर पीएँ।
चाय–चाय में पालिफिनील तत्त्व पाया जाता है। यह पेचिश के कीटाणुओं का नाश करता है। पेचिश के रोगी चाय पी सकते हैं, इससे लाभ होगा।
हरड़-पेचिश में छोटी हरड़ और सौंफ घी में सेक कर पीसकर मिश्री मिलाकर एक चम्मच नित्य गर्म पानी से लें। लाभ होगा।
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