रेशम की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
रेशम प्राणिज तन्तु की श्रेणी में आता है अतः यह स्पष्ट है कि यह किसी जानवर या कीड़े से प्राप्त होता है। रेशम जिस कीड़े से प्राप्त किया जाता है उसे रेशम का कीड़ा (Silk Worm) कहते हैं। इन कीड़ों की ग्रन्थियों से एक लसलसा पदार्थ निकलता है जिससे रेशम का रेशा बनता है। रेशम का वह कीड़ा जिसे रेशम उत्पादन के लिये पाला जाता है तथा शहतूत की पत्तियाँ जिसका भोजन होती हैं उसे बाम्बेक्समोरी (Bombayx Mori) कहते हैं तथा रेशम का वह कीड़ा जो जंगल में ओक अरण्डी की पत्तियों पर पलता है उसे एनथरा परनी (Enthera Perni) कहते हैं। वे व्यवसायी जो रेशम के रेशे एकत्र करते हैं उन्हें शहतूत की खेती करना भी आवश्यक होता है।
(i) शहतूत की खेती (Cultivation of Mulbery Trees ) – रेशम के कीड़ों के लिए शहतूत की खेती इसलिए आवश्यक है क्योंकि ये कीड़े (Bombayx Mori) शहतूत की पत्तियों पर ही पलते हैं।
(ii) कीड़े पालना (Rearing of Silk Worm) – रेशम की कीड़े का जीवन चक्र 37-73 दिन का होता है। इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएँ होती हैं-अण्डा, लावा, प्यूपा, कीड़ा।
रेशम की विशेषताये
रेशम की विशेषताओं का वर्णन निम्नवत किया जा सकता है-
भौतिक विशेषताएँ
1. संगठन (Composition ) – इसका सूत्र (C, H, N. O.) है। जमने वाली वसा फाइब्रियान (Fibrion) के रूप में, लसदार पदार्थ सिरेसिन तथा अमीनों एसिड के रूप में प्रोटीन होता है। यह अमीनों एसिड ग्लाइकान, ल्यूसिन, टायरोसिन एलेनाइन हैं। प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण इसे प्रोटीन रेशा भी कहते हैं।
2. रचना ( Structure ) – सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर अनुदैर्ध्य (Longitudianly) देखने पर आकार असनान सतह वाला टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई देता है जिसका व्यास काँच की छड़ बराबर होता है। अनुप्रस्थ काट (Transversally) काट में गोलाकार व त्रिकोन दिखाई देते है।
3. लम्बाई – प्राकृतिक तन्तुओं में सबसे अधिक लम्बाई रेशम के रेशे की होती है। इसकी लम्बाई 130-1800 फीट तक होती है। रेशम के रेशे से कच्ची अवस्था मेंही बुनाई की जाती है।
4. चमक ( Luster ) – रेशम के रेशों में स्वाभाविक प्राकृतिक चमक होती है अतः इससे बनेवस्त्र में भी चमक पाई जाती है। रतन रेशम के कपड़ों में लपेटे रेशम (Reeled Silk) की अपेक्षा कम चमक होती है।
5. मजबूती (Strength) – उपलब्ध प्राकृतिक तन्तुओं में सबसे मजबूत रेशा है। गीली अवस्था में 20% मजबूती कम हो जाती है सूखने पर पुनः मजबूती प्राप्त कर लेता है।
6. प्रतिस्कंदता (Resilency ) – रेशम के रेशों में अत्यधिक प्रतिस्कंदता (High Resliency) पाई जाती है इसलिए यह दबाकर छोड़ने पर शीघ्र अपनी पूर्व अवस्था में आ जाते हैं।
7. प्रत्यास्थता ( Elasticity ) – प्रत्यास्थता के गुण में रेशम प्राकृतिक तन्तुओं में दूसरे नम्बर पर आता है किन्तु यदि लगातार खींचकर या फैलाकर छोड़े तो पूर्व आकार प्राप्त नहीं कर पाता है।
8. ताप संवाहकता (Heat Conductivity) – ये ताप के कुचालक (Bad Conductor) होता है क्योंकि इसमें प्रोटीन की अधिकता होती है।
9. ताप का प्रभाव ( Effect of Sunlight and Heat )- सूर्य के तेज प्रकाश में रेशम के रेशे खराब हो जाते हैं तथा पीले पड़ जाते हैं। इसी प्रकार 300°F से अधिक ताप होने पर रेशे नष्ट हो जाते हैं। रेशम की विशेषता है जब तक आग के पास रहता है जलता है हटाने पर जलना बन्द हो जाता है।
10. अवशोषकता (Absorbency) – जितनी आसानी से नमी सोखता है उतनी ही जल्दी सूख भी जाता है। गीली अवस्था में 20% कमजोर हो जाता है किन्तु सूखने पर शक्तिशाली हो जाता है।
11. रगड़ का प्रभाव ( Effect of Friction )- रगड़कर धोने से रेशे खराब हो जाते है। बुनाई खराब हो जाती है। चमक कम हो जाती है।
12. वायु का प्रभाव ( Effect of Air )- अधिक समय तक वायु में रहने देने से रंग खराब हो जाते हैं।
13. सफाई ( Cleanliness ) – रेशम की सतह चिकनी होने के कारण यह आसानी से तथा जल्द गन्दे नहीं होते। गन्दे होने पर इनकी गन्दगी आसानी से निकल जाती है। पर धोने की विधि में रगड़कर, पीटकर नहीं धोना चाहिए।
14. पसीने का प्रभाव- यह रेशे को कमजोर, भदरंगा बना देता है। प्रयोग के बाद शीघ्र धोले ताकि पसीने का प्रभाव न पड़े। सुगन्धित पदार्थ भी हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
रासायनिक विशेषतायें-
1. अम्ल का प्रभाव (Effect of Acid) – मन्द अम्ल (Dilute Acids) का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता। कपड़े में चमक लाने हेतु रंगते समय अम्ल के मन्द घोल का प्रयोग किया जाता है। तीव्र अम्ल के प्रयोग से रेशम के रेशे उसमें घुल जाते हैं। पहले रंग उड़ता है फिर घुल जाते हैं।
2. क्षार का प्रभाव ( Effect of Alkali)- क्षार के तीव्र घोल में इसके रेशे घुलकर नष्ट हो जाते हैं। कास्टिक सोडे के प्रयोग से भी इनकी चमक नष्ट हो जाती है अतः इन्हें साफकरने के लिए डिटरजेन्ट पाउडर या मृदु साबुन का प्रयोग करना चाहिए।
3. रंग का प्रभाव – ये आसानी से कम तापक्रम पर जा सकते हैं, इस पर अम्लीय व क्षारीय दोनों रंगों का प्रयोग किया जाता है।
4. ब्लीच का प्रभाव – तीव्र ब्लीच का प्रयोग हानिकारक होता है। इसके लिए हाइड्रोजन पर ऑक्साइड या सल्फर डाइऑक्साइड का प्रयोग उचित रहता है। उत्पादित रेशम (Cultivated Silk) ब्लीच करने पर सफेद चमकदार हो जाता है जबकि स्वनिर्मित रेशम (Wild Silk) ब्लीच करने पर भी पीला रहता है।
5. कीड़ों का प्रभाव – कीड़ों का प्रभाव नहीं होता।
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