रेशम के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।
रेशम के प्रकार (Type Of Silk)
मुख्य रूप से रेशम दो प्रकार का पाया जाता है-
- स्वनिर्मित रेशम
- उत्पादित रेशम ।
( 1 ) स्वनिर्मित रेशम या जंगली रेशम
भारत, चीन तथा पूर्वी देशों के कई भागों में विभिन्न प्रकार की स्वनिर्मित रेशम पाई जाती है। इस रेशम के कीड़े पाले नहीं जा सकते हैं। इन कीड़ों के कोकूनों से निकाला हुआ रेशम घटिया तथा कड़ा होता है। बहुधा इसका रंग भूरा होता है, क्योंकि इसके कीड़े अधिकतर ओक वृक्ष पर पलते हैं जिससे इनमें टेनिक ऐसिड का प्रभाव आ जाता है। इनके मुख्य प्रकार निम्न हैं-
(अ) मूँगा रेशम- यह टसर के उत्तम प्रकार की होती है। साधारणतः इसका प्रयोग मिश्रित रेशों के वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है।
(ब) अरण्डी रेशम- यह बंगाल तथा आसोम में बहुतायत से होता है। अरण्डी वृक्षों के पत्तों पर पलने वाले कीड़े आसोम, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल में पाये जाते हैं। इनके कोकून बहुत ही कोमल, सफेद अथवा पीले रंग के होते हैं।
(स) टसर रेशम – इसके कीड़े ओक या बबूल के वृक्षों पर पलते हैं। इसका सर्वाधिक उत्पादन भारत व चीन में होता है।
( 2 ) उत्पादित रेशम
सफेद गाढ़ा पदार्थ, मोम तथा रंगीन पदार्थों से ढका रहता है जो कि रेशम के कीड़े द्वारा रेशम बनाते समय अपने शरीर से स्राव किया जाता है। इस रेशम का रंग भूरा, सफेद से लेकर हल्के पीले रंग तक का होता है। किन्तु यह रंग द्रव पदार्थों का होता है। अतः कोकूनों के उबालने पर रेशम का रंग सफेद होता है किन्तु यह रंग द्रव पदार्थों का होता है।
इसके अग्र प्रकार हैं-
(अ) लपेटा हुआ रेशम- यह रेशम का एक अविरल धागा होता है, जिसकी लम्बाई • ढाई सौ से लेकर पन्द्रह सौ मीटर तक की होती है। लम्बे रेशों को धुनने और कंघी करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह अविरल धागे इतनी अधिक लम्बाई के होते हैं, कि रील पर एक ही बार में चढ़ा दिये जाते हैं। एक अकेला धागा अत्यन्त सूक्ष्म होता है। अतः कई धागों को एक साथ मिलाकर रील पर चढ़ाया जाता है तथा अन्तिम सिरा आने पर उसमें नये धागे का सिरा जोड़ दिया जाता है और इस प्रकार से तैयार रीलों से वस्त्र बुना जाता है ।
(ब) कता हुआ रेशम– साधारणतः यह रेशम अशुद्ध रेशम के नाम से जाना जाता है। यह ऐसा रेशम होता है, जिसको कोकूनों पर से निकालकर लच्छी पर लपेटना सम्भव नहीं होता है। यह रेशम ऐसे कोकूनों से प्राप्त किया जाता है, जिन्हें फाड़कर कीड़े बाहर निकल आते हैं तथा कोकूनों को पर्याप्त मात्रा में हानि पहुँचा देते हैं। ऐसे फटे हुए कोकूनों को मसाले में पकाकर तथा उसका गोंद निकालने के उपरान्त रुई की तरह धुनते हैं। इसी धुनी हुई रेशम से ही धागा बनाते हैं इसको कता हुआ रेशम कहते हैं।
लपेटे हुए रेशम की अपेक्षा कते हुए रेशम को ऐंठन की अधिक आवश्यकता होती है, जिससे उसके छोटे-छोटे रेशे भी चिपके रहें। ऐंठन देने से रेशम की चमक नष्ट हो जाती है। इसी कारण कते हुए रेशम की अपेक्षा लपेटे हुए रेशम में अधिक चमक होती है।
कते हुए रेशम की तानने की शक्ति कम हो जाती है, लचक भी कम हो जाती है तथा आकृति में रुई के वस्त्र के समान दिखाई देने लगता है।
कता हुआ रेशम लपेटे हुए रेशम की अपेक्षा कम खर्चीला होता है और अधिकतर वस्त्र के बाना भरने के काम में प्रयोग में लाया जाता है। इन धागों को उतना अधिक मजबूत होना आवश्यक नहीं, जितना कि ताने के धागों का होना आवश्यक है।
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