स्वास्थ्य रक्षा के नियम
प्रातः काल उठकर कुल्ला करके कुछ ताजा जल पियें। सूर्योदय से पहले उठें, स्नान करके शान्त बैठ कर ईश्वर आराधना करें। इससे दिन सुखपूर्वक बीतता है। प्रातःकाल सूर्योदय के बाद सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।
शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले करें
भोजन का पाचन सूर्य की गर्मी से होता है। सोते समय पाचन कार्य निर्बल हो जाता है। इसलिए रात या दिन का भोजन करने के कम-से-कम तीन घण्टे बाद सोना चाहिए। जैन आदि कुछ लोग सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं। इससे सोने से पहले भोजन को पचने में सरलता रहती है। यह अच्छा नियम है। देर रात में भोजन करने से भोजन पचने के लिए समय नहीं रहता। यदि रात्रि में भोजन करना पड़े तो फल और दूध लेना उत्तम है। रात को भोजन के तीन घण्टे बाद स्त्री-पुरुष का संग होना चाहिए। इससे पहले संग करने से पेट खराब रहता है। सोने से पहले सत्संग, ईश्वर की आराधना करके सोना चाहिए। चित्त या सीधा न सोयें। गर्मी में सोते समय हाथ, पाँवों को शीतल जल से धोयें। इससे नींद अच्छी आयेगी, स्वप्नदोष नहीं होगा। शैय्या पर लेट कर निद्रा की प्रतीक्षा करना अच्छा नहीं। निद्रा आने पर ही शैय्या पर लेटना चाहिए।
भोजन से पहले
एक घण्टे पहले एक गिलास पानी पीयें। पानी में आधा नीबू का रस डालकर पीना अच्छा रहता है। फिर भोजन शुरू करने से पहले एक घूँट पानी पीयें। भोजन से पहले हाथ, पैर, मुँह धोएँ। पैरों को धोने से जठराग्नि का मुँह खुल जाता है।
भोजन करते समय
भोजन प्रसन्नचित्त होकर करना चाहिए। भोजन करते समय पानी न पीयें। आवश्यकता हो तो एक-दो घूँट पी सकते हैं। भोजन के एक घण्टे बाद पानी पीयें। भोजन के अन्त में एक गिलास छाछ (मट्ठा) लेना चाहिए। भोजन के बाद खिलखिलाकर हँसना चाहिए, इससे भोजन शीघ्र पचेगा, कब्ज नहीं होगा। भोजन में पाँच तुलसी के पत्ते रखें। इनके नित्य सेवन से मलेरिया नहीं होता। भोजन करने के आधे घण्टे बाद दूध पीना चाहिए। भोजन ढूंस-ठूस कर नहीं करना चाहिए। भूख से कुछ कम ही खाना चाहिए, बुढ़ापे में पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, परिश्रम भी कम करना पड़ता है। इस अवस्था में भोजन कम करना चाहिए।
भोजन के बाद
भोजन के बाद सौ कदम टहलने से खाया हुआ भोजन अच्छी तरह पचता है। इसके बाद पहले सीधा सोकर आठ साँस लें, फिर दाहिनी करवट लेकर सोलह साँस लें और फिर बाईं करवट लेकर बत्तीस साँस लें। इसके बाद जो इच्छा हो सो काम करें। नाभि से ऊपर बाईं ओर अग्नि का स्थान है, इस कारण भोजन पचाने के लिए बाईं करवट ही सोना चाहिए-‘भावप्रकाश’ । भोजन करके बैठ जाने से आलस्य और ऊँघ आती है। सोने से शरीर पुष्ट होता है। हाथ-मुँह धोते समय मुँह में एक घूँट पानी की भरकर आँखों पर पानी के छींटे दें। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है। थोड़ी दूर टहलें, भोजन के बाद नाक का बायाँ स्वर बन्द करने से पाचन शक्ति बढ़ती है, रात्रि को सोने से पूर्व पानी पीयें। पानी छानकर पीना स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। खाना खाने के बाद आधा घण्टा आराम करना चाहिए क्योंकि जब भोजन आमाशय में पहुँचता है तो प्रकृति उसके पचाने की ओर लगती है और आमाशय में अधिक रक्त जाने लगता है जिससे कि पाचक रस अधिक मात्रा में उत्पन्न हो सके। इसलिए यदि खाने के बाद तुरन्त शारीरिक या मानसिक श्रम किया जाये, स्नान किया जाये या विषय-भोग किया जाये अथवा इनके बाद ही शीघ्र भोजन कर लिया जाये तो भी रक्त संचालन दूसरी ओर हो जाने से आमाशय में रक्त कम पहुँचता है तथा आमाशयिक रस कम बनता है, पाचक रस कमजोर हो जाता है। निर्बल मनुष्यों तथा जिनका पाचन खराब हो, को खाना खाने के बाद आराम करना या धीरे-धीरे टहलना चाहिए।
माता का संयमी जीवन ही बच्चे को निरोग रखता है। स्त्री को पुरुष संग के बाद शीघ्र बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए। इससे बच्चे के शरीर में गर्मी चली जाती है। सप्ताह में कम-से कम एक बार सरसों के तेल से मालिश करनी चाहिए। चिन्ता नहीं करनी चाहिए। चिन्ता करने से स्वास्थ्य की जितनी हानि होती है, उतनी किसी रोग से नहीं होती। बीमार होने पर जो लोग चिन्ता नहीं करते, वे शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं। ‘मैं निरोग हो रहा हूँ!” ऐसी भावना रखें। पाखाना जाते समय जबाड़े के दाँतों को दबाकर बैठने से जीवन भर दाँत नहीं हिलते। लकवा भी नहीं होता । मधुमेह के रोगी सुबह-शाम लम्बी दौड़ नित्य लगायें तो बिना औषधि के पेशाब में शक्कर आना रुक जायेगा। सोवियत संघ में वृद्धावस्था विज्ञान संस्थान ने पता लगाया है कि बुढ़ापे का समय आराम से बैठे रहने का नहीं बल्कि कठोर परिश्रम का होता है। इससे बुढ़ापे में भी स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
कमर झुका कर बैठना बुढ़ापे को शीघ्र बुलाना है। टट्टी करते समय बायें पैर पर जोर देने से अर्श (Piles) नहीं होते और मल साफ होता है। टट्टी करते समय दाँतों को भींचे रखने से दाँत मजबूत रहते हैं। महात्मा बुद्ध का कथन है कि “एक बार हल्का आहार करने वाला ‘महात्मा’ है, दो बार संभल कर खाने वाला ‘बुद्धिमान’ है तथा इससे अधिक खाने वाला ‘महामूर्ख’ है।” महाराष्ट्र के नेत्र चिकित्सक संघ के डॉ. डी.जी. पटवर्द्धन ने धूप के चश्मों के अन्धाधुन्ध प्रयोग को खतरनाक बताया है। इससे नेत्रों में तेज रोशनी सहन करने की प्राकृतिक शक्ति नष्ट होती है।
हँसने के फायदे
हँसना श्रेष्ठ औषधि है। हँसने से पेट की पेशियों को शक्ति मिलती है, रक्त संचार तेजी से होता है तथा शरीर का व्यायाम हो जाता है।
दर्दों का कारण अपच है।
चिकित्सा रोग की नहीं, रोगी की होती है; शरीर की नहीं, शरीर को गतिशील रखने वाले प्राण (Vital Force) की होती है। -आर्गनन ऑफ होम्यो.
विश्व की बाह्य झलक अन्तर्मन का प्रकाश है जो चाहते हैं कि बाह्य अवस्थायें अच्छी हों, वे अन्तर्मन को सुधारें।—C.H.Keyserling.
सबसे बड़े चिकित्सक तीन हैं—समय, प्रकृति और धैर्य ।
आरोग्यता मन्त्र
जो व्यक्ति भगवान में विश्वास रखकर कार्य करता है और अपने सारे काम उसे अर्पण कर देता है, वह संसार की जितनी भी व्याधियाँ, रोग और आपत्तियाँ हैं, उन सब पर विजय पा लेता है तथा उसके मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। जो व्यक्ति अपने-आपसे घृणा करने लगा है, समझ लो उसका अन्त आ पहुँचा।