हृदय-रोग (Heart Diseases)
विवाहितों की तुलना में अविवाहित पुरुषों के हृदय रोगों तथा जीवनकाल घटने का खतरा बढ़ जाता है। यह निष्कर्ष ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने निकाला है। -रा. पत्रिका, जयपुर, 31.3.2001
आधुनिक जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या और अत्यधिक तनाव के कारण राजनीतिक नेताओं, डॉक्टरों, पत्रकारों, वकीलों, खिलाड़ियों अभिनेताओं और बौद्धिक पेशे से जुड़े लेगों में हृदय रोग बढ़ रहा है। तनाव के कारण एंजाइना और हृदयाघात के मामले बढ़ रहे हैं।
महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक दीर्घायु होती हैं तथा 50 वर्ष की आयु से पहले प्रायः उन्हें हृदय की धमनियों की रुकावट नहीं होती। 50 वर्ष की आयु के बाद भी पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को कम प्रतिशत में यह रोग होता है। नारी की कोमलता एवं करुणामय स्वभाव ने उनकी कोरोनरी धमनी को कठोर होने से बचाया है। पुरुषों को भी अपने चरित्र में करुणा उत्पन्न करनी चाहिए एवं राक्षसी क्रोध के स्थान पर चेहरे को प्रेममय स्वभाव से कोमल बनाना चाहिये ।
पुरुष अति महत्त्वाकांक्षा, तनाव और चुनौतियों का जीवन जीकर आत्मघाती होता जा रहा है, 30 से 40 वर्ष की आयु में ही हृदय की धमनियों में अवरोध का शिकार होता जा रहा है। व्यायाम एवं शारीरिक श्रम की कमी ने उसे निष्क्रिय एवं मोटा बना दिया है। ‘खाओ-पीओ और मौज करो’ के भ्रामक नारे ने उसे निकोटिन एवं नशे-पते का शिकार बनाकर नाश के द्वार पर खड़ा किया है। भोजन में स्वाद एवं सुगन्ध की भरपूरता, भोजन में रेशे की कमी स्वास्थ्य को गिरा रही है। तली-भुनी चीजे एवं मिष्ठान हमारी कोरोनरी को कठोर बनाते हैं। हमें जीभ एवं दाँतों को अपनी कब्र खोदने के औजार नहीं बनने देना है।
युवाओं में हृदय रोग अनियमित दिनचर्या, आरामदेह जिंदगी और फास्ट फूड के कारण बढ़ रहा है। खान-पान पर नियंत्रण, भोजन में वसा, कार्बोहाइड्रेट की कम मात्रा, धूम्रपान व मद्यपान के परहेज से हृदय रोगों से बचाव होता है।
यदि हृदय को स्वस्थ रखना है तो 40 वर्ष के बाद घी, चीनी और नमक कम खायें। खेलकूद, व्यायाम, घूमने जाएँ। थके-मांदे पुरुषों के घर आने पर नारियाँ अपनी मधुर मुस्कान एवं ताजा पोषक भोजन से उनकी थकान दूर करें। यह रास्ता हृदय रोगों से बचने का है।
जानिए हृदय रोग से जुड़े तथ्य क्या हैं?
1. आपका हृदय आपके जन्म लेने से बहुत समय पहले से लेकर आपकी मृत्यु तक बिना विश्राम के अनवरत सेवा करता है। हृदय की माँस-पेशियाँ एक पहलवान की बाहों की माँस-पेशियों से भी अधिक मजबूत होती हैं।
2. आपके हृदय का औसतन वजन 250 से 300 ग्राम तक होता है। आपका हृदय केवल दो मुट्ठियों के बराबर है।
3. यह प्रतिदिन 1 लाख 4 हजार धड़कन करता हुआ 7200 लीटर रक्त पम्प करता है। हृदय की गति 3 मिनट के लिए रुक जाये तो मृत्यु हो जाती है। शरीर में रक्त वाहिनियों का 60,000 मील लम्बा जाल बिछा है।
4. हृदय रोग अधिकतर मानसिक तनाव से ग्रस्त लोग, नेता, सेठ, अफसर, वकील, डॉक्टर और शहरी लोगों में पाया जाता है। अशिक्षितों में पढ़े-लिखे लोगों की अपेक्षा हृदय रोगों की सम्भावना 40 से 50 प्रतिशत तक अधिक होती है। जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है वैसे-वैसे हृदय रोग होने की प्रवृत्ति घटती जाती है।
5. हृदय-रोग स्त्रियों, पोस्टमैनों, नियमित व्यायाम करने वालों तथा ग्रामीणों में बहुत कम पाया जाता है।
6. हृदय-रोग का मोटापा, मधुमेह, धूम्रपान, शराब पीना, चर्बीदार भोजन करना, चिंतायुक्त और आधुनिक तनावपूर्ण जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। धूम्रपान से धड़कन बढ़ती है। धूम्रपान करने वाले 51 प्रतिशत पुरुषों और 54 प्रतिशत महिलाओं के हृदय रोगों से प्रभावित होने की संभावना अधिक पाई गई है।
हृदय रोग के संभावित लक्षण
(1) आराम की नींद सोने के लिए दो से अधिक तकिये लगाना ।
(2) सप्ताह में पैरों में तीन या ज्यादा बार ऐंठन (Cramps) आना ।
(3) कसरत, व्यायाम, तेज मेहनत का काम करने के बाद, ठंड में साँस में घरघराहट प्रतीत करना।
(4) कमरे में बार-बार खाँसी आना।
(5) चलने पर धड़कन बढ़ना।
(6) नित्य की कसरतें जो सरलता से हो जाती थीं, अचानक कठिनाई से होना। यदि बैठे बिठाए ही कोई व्यक्ति एकदम पसीने में नहा जाए (अक्सर दिल का दौरा पड़ने पर या उसके पहले मनुष्य को बहुत पसीना आता है।) ये लक्षण हृदय रोग की सूचना है। इन लक्षणों के होने पर हृदय रोग विशेषज्ञ से जाँच करवायें।
(7) हृदय रोग की तीव्र अवस्था (Acute Stage) के निम्न लक्षण हैं.
(a) छाती में बाँई ओर भयंकर दर्द होना।
(b) श्वास लेने में तकलीफ होना।
(c) मूर्च्छित होना ।
(d) छटपटाना।
(e) हार्ट अटेक में अचानक सीने में दर्द होता है और व्यक्ति शक्तिहीन होता, बैठता हुआ, बेहोश हो जाता है। यह चन्द मिनटों में हो जाता है।
(f) अगर चलने, सोचने या किसी भी अन्य गतिविधियों के साथ शरीर के किसी भी भाग में दर्द होता है या अचानक ही छाती में दर्द उठता है और 15 से 20 मिनट तक नहीं रूकता है तो तुरन्त डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
(8) हृदय-रोग की जीर्ण अवस्था (Chronic Stage) के निम्न प्रमुख लक्षण हैं-
(a) थोड़ा काम करने से साँस फूलना।
(b) रात को बैठे-बैठे सोने के लिए मजबूर होना ।
(c) पैरों पर सूजन आना।
(d) शारीरिक कमजोरी का अनुभव होना ।
(e) यकृत का बढ़ना तथा जलोदर का होना।
(f) अगर चलने, सोचने या किसी भी अन्य गतिविधि के साथ शरीर के किसी भी भाग में दर्द होता है या अचानक ही छाती में दर्द उठता है और 15 से 20 मिनट तक नहीं रुकता है तो तुरन्त डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
(9) “क्या हृदय-रोग की रोकथाम हो सकती है?” उत्तर है—“हाँ”,
(a) यदि भोजन नियमित, परिमित और सन्तुलित करें। कभी भी अधिक न खायें।
(b) यदि आप अण्डे की जर्दी न खायें, हलवा, मक्खन और नमक कम खायें। शाकाहारी भोजन करें।
(c) यदि आप नियमित व्यायाम करके अपना मोटापा दूर कर सकें।
(d) यदि आप धूम्रपान करना छोड़ दें।
(e) यदि आप चिन्ताओं और आधुनिक तनावों से दूर रह सकें।
(f) यदि आप अपने काम, आराम और व्यायाम में नियमितता और तालमेल बनाये रखें।
(g) हृदय की सभी तरह की बीमारियों को टालने के लिए रोजमर्रा के काम-काज से हटना जरूरी है।
दरिद्र एवं दुःखियों पर दया से द्रवीभूत होने वाले, दिल के दौरे से दूर रहते हैं।
कठिन परिश्रम से मनुष्य दिल के दौरे से बच सकता है। 16 किलो मीटर तक चहलकदमी करने वाले व्यक्ति को दिल की बीमारी नहीं होती। 35 से 40 वर्ष में अधिक परिश्रम करने से भी इस बीमारी के आक्रमण की कम सम्भावना होती है।
हृदय रोगी को ठोस आहार, देर से पचने वाली चीजें, तेज मसाले, तली हुई चीजें, चाय, कॉफी, तम्बाकू, शराब, घी, मक्खन बिलकुल बन्द कर देने चाहिये।
द्वेष, क्रोध, स्वार्थ व लोभ भी हृदय रोग के कारण
मानसिक तनाव, अलगावपन, द्वेष, क्रोध, स्वार्थ, लोभ और आसक्ति—ये सब हृदय रोग के कारण हैं। हृदय रोग के मुख्य तीन कारण-रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा और मधुमेह का होना है। इसके अलावा मोटापा और तनाव तथा हमारा खान-पान और बदली हुई जीवन शैली भी इसके कारक हैं। हमारा भोजन कुछ इस तरीके का है कि हम अधिक मात्रा में फैट्स खाते हैं पर उसकी तुलना में शारीरिक परिश्रम नहीं करते।
इन सब कारणों से हृदय को रक्त पहुँचाने वाली धमनियाँ सिकुड़ कर सख्त हो जाती हैं
जिससे हृदय में रक्त की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती। हृदय रोगी योग की कुछ सामान्य क्रियाएँ, जैसे-ध्यान, शवासन, उदरीयश्वसन, प्राणायाम व प्रत्यक्षीकरण को दैनिक जीवन में शामिल कर लें तो बाईपास सर्जरी, एंजियोप्लास्टी वगैरह से बच सकता है।
हृदय सम्बन्धी रोगों में उचित आहार का सेवन औषधियों की तरह ही काम करता है। इस तरह के रोगियों को कम कैलोरीयुक्त भोजन खाना चाहिए। इसे संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रोल से मुक्त होना चाहिए। खाने में सूरजमुखी का तेल या सफोला ही उपयोग में लेना चाहिए। केवल वसा रहित दूध ही रोगी को देना चाहिए। पनीर, सब्जियाँ फल आदि आहार में सम्मिलित की जा सकती हैं।
हृदय के रोगी को पूर्ण आराम करना चाहिए। टट्टी-पेशाब भी बिस्तर पर ही करना चाहिए। हृदय के रोगी को सीढ़ियाँ चढ़ना, दौड़ना नहीं चाहिये।
हृदय रोग से बचाव
नमक या सोडियम की मात्रा कम करने से उच्चरक्तचाप से छुटकारा व दिल के दौरे का खतरा कम हो जाता है। नमक की नियंत्रित मात्रा लगभग छह ग्राम प्रतिदिन अमेरिका के विशेषज्ञों ने मानी है।
नमक नियंत्रण में करने के साथ-साथ फल और अनाज के सेवन को भी ध्यान में रखना चाहिए। शराब बिल्कुल न छुएँ तो बहुत अच्छा है। वजन 4.5 कि.ग्रा. घटाना और 30 मिनट व्यायाम करना अत्यन्त लाभकारी है। कभी भी कोई बाजार की रेडीमेड खाने की वस्तु लेते समय नमक पर ध्यान देना चाहिए।
अखरोट और बादाम सप्ताह में 5 बार खायें तो हृदय रोगों से बचने का खतरा 50% कम हो जाता है। दिल की अन्दरूनी मजबूती के लिए अखरोट-बादाम को अपने भोजन में उचित स्थान दें।
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