ख़खसा (Tanners Cassia)
प्रचलित नाम- अर्बर/ आवर्त्तकी ।
उपयोगी अंग- छाल, पुष्प एवं बीज ।
‘परिचय- यह अतिशाखित क्षुप है। इसके पत्ते पक्षाकार संयुक्त 8-12 जोड़ पत्रक में होते हैं। हर पत्ते के जोड़ के बीच एक सीधी, पतली ग्रन्थि होती है। उपपत्र-पत्र जैसे हृदयाकृति, फूल सुन्दर, पीतवर्णी समग्र वर्ष के बीच आते रहते हैं। इसकी फलिका चिपटी और कागज की तरह पतली होती है।
स्वाद – तिक्त ।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
शोथघ्न, व्रणरोपण, ग्राही, कंडुघ्न, पौष्टिक, कफनिःसारक, ज्वरघ्न ।
मुखगतव्रण, दाह, श्वित्र, कृमिरोग, अतिसार, शोथ (सूजन), व्रण मूत्रघात, आंखों के रोग, शूल एवं ज्वर में इसका प्रयोग लाभदायक होता है। प्रदर प्रवाहिका, मधुमेह, प्रमेह में पानी में घोटकर पिलाना चाहिए एवं नाभि पर लेप करने से फायदा होता है। मधुमेह में खखसा के फूलों की चाय का सेवन करने या खखसा के पंचांग के चूर्ण (30) रत्ती) या बीजों का चूर्ण के जल के साथ सेवन से प्यास कम लगती है, मूत्र की मात्रा घट जाती है या इसके साथ नगर का मिश्रण करने से अधिक फायदा होता है। अतिसार तथा प्रवाहिका में खखसा के मूल की छाल को चबाकर इसके रस के दो-तीन घूंट उदर में उतारने पर चमत्कारिक फायदा होता है। कोलेरा (विसूचिका), कुपचन, शूल, वमन तथा अतिसार में खखसा के मूल की छाल नमक के साथ चबाकर रस को उदर में उतारने पर फायदा होता है। उदरशूल में खखसा के पत्तों को गरम कर उदर पर बांधने से लाभ होता है। नेत्रशूल में इसकी छाल के स्वरस की एक-दो बूँद आंखों में डालने से लाभ होता है। चोट या मार लगी हो तो खखसा के पत्रों तथा इमली के पत्तों में साजीखार मिलाकर इन सब को पीसकर कल्क बना लें। इस कल्क का लेप करने से लाभ होता है। गर्भवती स्त्री के वमन में खखसा के एक तोला पुष्पों को गाय के दूध में उबालकर इसमें एक तोला मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए। पांव में या घुटने में मोच आई हो या सूजन हुई हो तो खखसा के पत्तों को गरम कर इनके पैड बाँधने से लाभ होता है। बच्चों के कोलरा में खखसा एवं बैंगन के मूल की छाल को जल में घिसकर पिलाने से फायदा होता है। घुटनों में सूजन होने पर खखसा एवं सोमलता के पंचांग (एक तोला) तथा शमी के पत्ते (दो तोला) को पानी में घोंटकर थोड़ा जीरा एवं धनिया मिलाकर सात रोज तक सेवन करने से लाभ होता है। नेत्रों में फूली पड़ने पर खखसा के. बीजों को रतनजोत (जैट्रोफाकर्कस) के दुग्धक्षीर में घिसकर आंखों में अंजन करने से फायदा होता है। मूत्रघात में इसके बीजों को या खखसा के पत्तों को बाँधने से वेदना कम होती है। मुखगत व्रण में खखसा के पत्रों को मुख में रखने से या इसके रस से कुल्ला करने से लाभ होता है। प्रदर एवं प्रमेह में खखसा के फूलों की गुलकंद का सेवन करने से लाभ होता है। मधु प्रमेह में खखसा के बीजों के चूर्ण से फायदा होता है।
खखसा रस के बीज में रामचन्द्र जी के पदचिह्न दिखाई देते हैं। इसके फूलों को अपनी सुन्दरता का अभिमान हुआ। श्री रामचन्द्र जी ने इन पुष्पों से सीताजी के विषय में पूछताछ की, किन्तु कोई उत्तर न देने पर श्री रामचन्द्र जी ने इन फूलों को श्राप दिया- तुममें कोई सुगंध न रहेगी, किसी भी देवी-देवता पर तुम चढ़ाये नहीं जाओगे तथा तुम्हारा उपयोग छोटे लोग करेंगे (इसका उपयोग चर्म रंगने में करते हैं)।
मात्रा- पंचांग चूर्ण 30 रत्ती ।
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