विटामिन सी की उपयोगिता
सगर्भा एवं दूध पिलाने वाली माताओं के लिए यह आवश्यक है। उदर, आन्त्र एवं यकृत के अनेक रोगों में यह उपयोगी है। शरीर की वृद्धि, भार की वृद्धि, क्षुधा बढ़ाने और रक्त निर्माण में इससे सहायता मिलती है। बालकों के आहार में यह अनिवार्य है। स्कर्वी रोग को रोकने और ठीक करने के लिए यह मानी हुई औषधि है।
विटामिन ‘सी’ के स्रोत
विटामिन ‘सी’ प्राकृतिक रूप से सन्तरे, नीबू, मौसमी आदि रसदार फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। चौलाई, पत्ता गोभी, कच्ची बन्द गोभी, छोटी गाजर, प्याज, टमाटर, मूली, धनिया, पालक, चुकन्दर, नाशपाती, बेर, अनन्नास, अमरूद में यह पाया जाता है। आँवला तो लगभग सम्पूर्ण विटामिन ‘सी’ ही है। आँवले को पकाने पर भी इसमें से विटामिन ‘सी’ नष्ट नहीं होता। आँवला शुक्रवर्धक है। रक्त पित्त का नाश करता है। आप सूखे आँवले को पीसकर कपड़े से छान कर शहद में मिलाकर 3 ग्राम नित्य 4 महीने सेवन करके अपनी कायापलट कर सकते हैं। आपकी भूख बढ़ जायेगी। गहरी नींद लाने, मानसिक शक्ति बढ़ाने, दिल को शक्ति देने, बाल काले चमकदार बनाने, सिर दर्द आदि रोगों को दूर करने में आँवला बड़ी-बड़ी पेटेण्ट औषधियों से भी अधिक लाभदायक है। आँवले को पीस कर, इसकी गोलियाँ बनाकर 6 गोली दिन में 3 बार निगल लें (“भोजन के द्वारा चिकित्सा’ पुस्तक में ‘आँवला’ शीर्षक पाठ भी देखें)। हरी सब्जियों को कच्चा खाकर, उनका रस प्रतिदिन पीकर आप लम्बी आयु प्राप्त कर सकते हैं, बुढ़ापे में भी जवानों की भाँति काम कर सकते हैं।
विटामिन ‘सी’ की कमी से होने वाले रोग
मुख पीला, शक्ति का ह्रास, शरीर में वेदना, मसूड़े फूले, उनमें रक्त बहता है। दाँत ढीले होकर हिलने लगते हैं। श्वास में दुर्गन्ध आती है। त्वचा और श्लैष्मिक कलाओं से रक्तस्राव होता है। दाँत टेढ़े-मेढ़े और सदोष होते हैं पाइरिया होता है। क्षुधा का नाश होता है। पोषण पूरा नहीं हो पाता। हड्डी, कोषाएँ एवं रक्त वाहिनियाँ आघातित हो जाती हैं अर्थात् शरीर में विटामिन ‘सी’ कम हो जाने पर घाव आसानी से नहीं भरते, मामूली चोट लग जाने, फिसल जाने से हड्डियाँ टूट जाती हैं। स्कर्वी जैसा भयानक रोग हो जाता है। मनुष्य कमजोर और चिड़चिड़ा हो जाता है। रोगी में रक्त की कमी हो जाती है, रक्त में लाल कण कमजोर और अपूर्ण रह जाते हैं, मनुष्य की धमनियाँ सिकुड़ जाती हैं, उसका हृदय कमजोर हो जाता है, रोगी संक्रामक रोगों का मुकाबला नहीं कर सकता; उसको नजला, जुकाम, सर्दी, न्यूमोनिया आदि रोग बार-बार हो जाते हैं। काम करने की शक्ति घट जाती है। थोड़ा-सा काम करने पर भी थक जाता है और जवानी में ही बूढ़ा होने लग जाता है।