दमा (Asthma)
दमा: कारण
दमा का कारण–दमा ऐसे सूक्ष्म तत्त्वों से हो सकता है जिन्हें आँखों से देख पाना असम्भव है, उदाहरणार्थ- परागकण। कुछ लोगों को यह रोग शयनकक्ष या स्नान कक्ष में भी हो सकता है जहाँ बहुत छोटे-छोटे जीवाणु, जैसे—डस्टमाइट, कम्बलों, पदों व दरियों के धूलकणों से। प्राय: देखा गया है कि दमा के रोगी पालतू कुत्तों, बिल्लियों, खरगोश आदि बालदार जानवरों के साथ नहीं रह सकते। छोटे-छोटे कण (स्पोर्श) जो मोल्ड्स व फन्गस के होते हैं, वे भी दमा की समस्या पैदा कर देते हैं।
कुछ दमा के रोगी खाद्य पदार्थों, जैसे- दूध, अडे, मछली, ईस्ट या भोजन सुरक्षित रख वाले प्रेजरवेटिव्स (जैसे—सल्फर डाई ऑक्साइड) से एलर्जिक होते हैं। वे ऐसे भोजन को कभी कभी सूँघकर या खाने के बाद रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। कुछ लोग गीले रंगों, वाहनों के धुएँ सिगरेट के धुएँ व कुछ औषधियों से भी रोग ग्रस्त हो जाते हैं। कुछ तत्त्व जो श्वसन तंत्र को उत्तेजित करते हैं, उनमें एलर्जिक क्रियाएँ पैदा कर देते हैं। मौसम के तापमान का परिवर्तन, अत्यधिक शारीरिक श्रम, भावनात्मक उलझनें, अत्यधिक हँसी भी दमा का दौरा उत्पन्न कर सकते हैं।
एलर्जी व दमा
ऐसे तत्त्वों को, जो एलर्जी उत्पन्न करते हैं, एलर्जेन कहा जाता है। स्वस्थ शरीर में इस प्रतिक्रिया को रोकने की क्षमता एक विशेष तन्त्र द्वारा होती है जिसे ‘इम्यून सिस्टम’ कहते हैं। इस तन्त्र का प्रमुख तत्त्व शरीर की श्वेत रक्त कणिकाएँ (डब्लू.बी.सी.) होती हैं। ये कणिकाएँ शरीर में प्रवेश करने वाले सभी एलर्जेन (बाहर से हमला करने वाले रोगाणु) से निपटने को तत्पर रहती हैं तथा जो तत्त्व बाहरी होते हैं, उनके विरुद्ध एक प्रोटीन तत्त्व का निर्माण करती हैं, जिसे ‘एन्टीबाडी’ कहते हैं। यही एन्टीबाडी उस बाहरी तत्त्व (एन्टीजेन) को तोड़ने में सहायक होती है। हमारे शरीर में ऐसी बहुत सी एन्टीबाडीज होती हैं जो उन बाँह्य तत्त्वों के कुप्रभावों को नगण्य कर देती हैं, उदाहरणार्थ—मीजेल्स (खसरा) । वाइरस का रोग होने पर शरीर में इसकी एन्टीबाड़ी बन जाती है जो पुन: इसके संक्रमण में रोग को उत्पन्न नहीं होने देती। परन्तु कुछ बीमारियाँ, जैसे—फ्लू, जुकाम के वाइरस सदैव परिवर्तित होते रहने के कारण पूर्व की बनी एन्टीबाडी उपयोगी नहीं सिद्ध होती, अतः बार-बार फ्लू व जुकाम होता रहता है।
दमा एक प्रकार की एलर्जी क्रिया है। जब यही क्रिया त्वचा में होती है तब उसे एक्जिमा कहते हैं। जब आँख व नाक में हो तो ‘हे फीवर’ और जब श्वसन तन्त्र में हो तो दमा कहते हैं। वास्तव में शरीर के अन्दर उक्त अंगों में एक जैसी ही क्रियाएँ होती हैं। एलर्जी जब गम्भीर हो जाती है तो उसे ‘एनाफाइलैक्सिस’ कहा जाता है। यह स्थिति जीवन के लिए चुनौती होती है क्योंकि इसमें वायु तन्त्र केवल सिकुड़ता ही नहीं, बल्कि अन्दर सूज भी जाता है, रक्तचाप गिर जाता है और रोगी निश्चेत होने लगता है।
एलर्जी प्राय: उन लोगों में बहुधा होती है जिनके वंश में दमा, एक्जिमा, ‘हे फीवर’ जैसी बीमारियाँ होती रही है। ऐसा दमा किसी भी आयु में कभी भी किसी भी कारण से हो सकता है और सदैव के लिए ठीक भी हो सकता है। ऐसा कभी-कभी हार्मोन्स के बढ़ने व घटने के कारण भी होता है। भावनात्मक परेशानियाँ, जैसे—अत्यधिक डर, परीक्षाएँ, अथक परिश्रम भी दमा को गम्भीर करने के कारणों में अपनी भूमिका प्रदान कर सकता है।
फेफड़ों को हवा देने वाली नलियाँ छोटी-छोटी माँस-पेशियों से ढकी रहती हैं। इन माँस-पेशियों में आक्षेप होने के कारण जो साँस लेने में कष्ट होता है और गला साँय-साँय करता है, उसे दमा (श्वास रोग) कहते हैं। आरम्भ में दमा का दौर कम और बहुत दिनों से होता है। धीरे-धीरे पुराना होने पर नित्य होने लगता है। यह बड़ी कष्टसाध्य और पुरानी बीमारी है। दमा का दौस होने पर शान्त करने का उपचार करना चाहिए और फिर चिकित्सा पुनः दमा न हो, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। केवल दवाइयों से ही दमा को ठीक कर देने की आशा गलत है। आहार-आचार व प्राकृतिक नियमों का पालन दमा से स्थाई रोग-मुक्ति के लिए आवश्यक है। दमा के रोगी की छाती का सेक करने से रोगी को आराम मिलता है। रक्त में ईसनोफीलिया की वृद्धि से प्राय: सूखा दमा होता है।
दमा (अस्थमा) के घरेलू उपाय – Dama (Asthma) ke gharelu upay
पेट साफ रखें, कब्ज न होने दें। ठण्ड से बचें। देर से पचने वाली गरिष्ठ चीजें न खायें। शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले, शीघ्र पचने वाला और कम मात्रा में करें। गरम पानी पीयें। शुद्ध हवा में घूमने जायें। धूम्रपान न करें, क्योंकि इसके धुएँ से दौरा पड़ सकता है। प्रदूषण से दूर रहें खासतौर से औद्योगिक एवं वाहन धुएँ से। धूल, धुएँ की एलर्जी, सर्दी एवं वायरस से बचें। मनोविकार, तनाव, कीटनाशक दवाओं, रंग-रोगन, लकड़ी के बुरादे से बचें। मूँगफली, चॉकलेट से परहेज करें, फास्ट-फूड न लें, अपने वजन को कम करें। नियमित रूप से योगाभ्यास एवं कसरत करें। बिस्तर पर पूर्ण आराम एवं मुँह के द्वारा धीरे-धीरे साँस लें। यहाँ वर्णित भोजन सम्बन्धी चीजें नियमित कुछ महीने निरन्तर प्रयोग करने से दमा में लाभ होता है। दमा में खाँसी हो तो खाँसी में वर्णित चीजें भी प्रयोग कर सकते हैं।
विटामिन ई–दमा ठीक करने में इस विटामिन की अत्यधिक आवश्यकता है। यह रक्त कणों के निर्माण में लाभ करता है। वायु प्रदूषण के कारण शरीर में होने वाले हानिकारक तत्त्वों के प्रभाव को कम करने में सहायता देता है। इसकी दैनिक खुराक 15-20 मिलीग्राम है। यह अंकुरित गेहूँ, पिस्ता, सोयाबीन, सफोला तेल, नारियल, घी, ताजा मक्खन, टमाटर, अंगूर, सूखे मेवों में मिलता है।
कैल्शियम–दमा में कैल्शियम प्रधान भोजन लाभ करता है। इसकी दैनिक मात्रा 0.8 ग्राम है, लेकिन आवश्यकतानुसार अधिक मात्रा में भी ले सकते हैं। शरीर को जितने कैल्शियम की आवश्यकता होती है, वह प्रतिदिन 50 ग्राम तिल खाने से मिल जाती है। यह दूध, पालक, चौलाई, सोयाबीन, सूखे मेवे, आँवला, गाजर, पनीर में पाया जाता है।
अस्थमा के 80 प्रतिशत रोगियों में अम्ल के लक्षण पाए जाते हैं। दमा के रोगी अम्लपित्त के पाठ में बताई बातों का पालन करें।
छुहारा-छुहारा गरम है। फेफड़ों और छाती को बल देता है। कफ व सर्दी में लाभदायक है।
नीबू-दमा का दौरा पड़ने पर गरम पानी में नीबू निचोड़कर पिलाने से लाभ होता है। दमा के रोगी को नित्य एक नीबू, दो चम्मच शहद और एक चम्मच अदरक का रस, एक कप गरम पानी में पीते रहने से बहुत लाभ होता है। यह दमा के दौरे के समय भी ले सकते हैं। यह हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, पाचन संस्थान के रोग एवं उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए भी लाभदायक है। नीबू के रस में शहद मिलाकर चाटने से बच्चों का साँस फूलना बन्द हो जाता है।
खजूर-दमा में खजूर लाभ करती है।
गाजर-दमा में गाजर अथवा इसका रस लाभदायक है। गाजर का रस 185 ग्राम, चुकन्दर का रस 150 ग्राम, खीरा या ककड़ी का रस 125 ग्राम मिलाकर पीने से दमा में अधिक लाभ होता है।
अंगूर-अंगूर खाना बहुत लाभदायक है। यदि थूकने में रक्त आता हो तब भी अंगूर खाने से लाभ होता है।
अंजीर-दमा जिसमें कफ-बलगम निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है। इससे कफ बाहर आ जाता है तथा रोगी को शीघ्र आराम भी मिलता है।
मेथी–दमा हो तो चार चम्मच मेथी एक गिलास पानी में उबालें। आधा पानी रहने पर छानकर गर्म-गर्म ही पीयें।
केला–दमा के रोगियों को केला कम खाना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि केला खाने से दमा बढ़ता हुआ पाया जाय तो केला नहीं खाना चाहिए। दमे में केले से एलर्जी पायी जाती है। करेला—करेले की सब्जी खाने से दमे में लाभ मिलता है।
पोदीना-चौथाई कप पोदीने का रस इतने ही पानी में मिलाकर नित्य तीन बार पीने से लाभ / होता है। खाँसी, दमा इत्यादि विकारों पर पुदीना अपने ‘कफ-निस्सारक’ गुणों के कारण काफी असरकारक सिद्ध होता है। पुदीने का अर्क इन रोगों पर विशेष प्रभावी है।
दूध-दूध में पाँच पीपल डालकर गर्म करें और शक्कर डालकर नित्य सुबह-शाम पीवें।
धनिया—धनिया व मिश्री पीस कर चावलों के पानी के साथ पिलाने से लाभ होता है।
तरबूज – दमा के रोगियों को तरबूज का रस नहीं पीना चाहिए।
इन्फ्रारेड-रेज—ये किरणें दमा में लाभप्रद हैं।
लहसुन—होम्योपैथिक डॉ. ई. पी. एन्शूज की पुस्तक ‘थेराप्यूटिक बाईवेज’ में लहसुन को दमा वालों के लिए उपयोगी बताया है। लहसुन के रस को गरम पानी के साथ देने से श्वास, दमा में लाभ होता है। लहसुन की कली भूनकर जरा-सा नमक मिलाकर दो बार खाने से श्वास में लाभ होता है। एक कप गरम पानी में दस बूँद लहसुन का रस, दो चम्मच शहद नित्य प्रात: दमा के रोगी को पीना लाभदायक है। इसे दौरे के समय भी पी सकते हैं।
प्याज—प्याज को कूटकर सूँघने से खाँसी, गले के रोग, टान्सिल, फेफड़े के कष्ट दूर होते हैं। प्याज के रस में शहद मिलाकर सूँघना भी लाभदायक है।
शलगम–शलगम, बन्दगोभी, गाजर और सेम (बालोल) का रस मिला कर सुबह-शाम दो सप्ताह तक पीने से दमा में लाभ होता है।
गेहूँ—गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों का रस (Wheat Grass Juice) देकर दमा जैसे पुराने से-पुराने रोग विख्यात प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. एन. विगमोर द्वारा अच्छे किये गये हैं।
गुड़—सर्द ऋतु में गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से दमा में लाभ होता है। दमा न होने पर भी इसके खाने से दमा नहीं होता है।
हल्दी–दमा में कफ गिरने पर नित्य तीन बार 5 ग्राम हल्दी की फँकी गरम पानी से लें। एलर्जिक (असहिष्णुता) श्वास रोगों में हल्दी बहुत लाभदायक पीसकर एक चाय चम्मच की मात्रा दो बार गरम पानी से दें। हल्दी हर प्रकार के श्वास-रोगों में लाभदायक है। । हल्दी को बालू में सेकका
सेंधा नमक- सेंधा नमक एक भाग, देशी चीनी (बूरा) चार भाग, दोनों मिलाकर बारीक पीस लें। आधा चम्मच नित्य 3 बार सौ ग्राम गरम पानी से लेने से दमा में लाभ होता है।
पीपल (वृक्ष)—पीपल के पेड़ के गहरे हरे पत्ते धोकर छाया में सुखा कर बारीक पीस लें। इसकी एक चम्मच पानी से सुबह-शाम दो बार फॅकी लें। जब खाँसी आये तो एक चम्मच पीपल के पत्तों का चूर्ण दो चम्मच शहद में मिलाकर दो बार चाटें। खाँसी ठीक हो जायेगी।
कुलथी—कुलथी की दाल बनाकर दिन में दो बार खाने से श्वास की बीमारी में आशातीत लाभ होता है। ऐसा कम-से-कम तीन माह तक करें।
इलायची छोटी- छोटी इलायची खाना दमा में लाभदायक है।
ईसबगोल—साल छ: महीने तक लगातार दिन में दो बार ईसबगोल की भूसी की फँकी लेते रहने से सब प्रकार के श्वास रोग मिटते हैं। 6 मास से दो वर्ष तक पुराना दमा भी इससे जाता रहता है।
मौसमी-मौसमी के रस में, रस का आधा भाग गर्म पानी, जीरा, सौंठ मिलाकर पिलायें।
फिटकरी-आधा ग्राम पिसी हुई फिटकरी शहद में मिलाकर चाटने से दमा, खाँसी में आराम आता है।
शहद — श्लेष्मीय, दुर्बल व्यक्ति जिनके फेफड़े श्लेष्मा से भरे रहते हैं और साँस लेना कठिन होता है, उनको प्याज का रस या प्याज को कूट-कूट कर गूदा बनायें, इसे शहद में मिलाकर देना पुराना नुस्खा है। दमा और फेफड़े के रोग शहद सेवन करने से दूर होते हैं। शहद फेफड़ों को बल देता है। खाँसी, गले की खुश्की तथा स्नायु कष्ट दूर करता है। छाती में घरर-घरर दूर होती है। केवल शहद भी ले सकते हैं।
जौ – दमा में 6 ग्राम जौ की राख, 6 ग्राम मिश्री-इन दोनों को पीसकर सुबह-शाम गरम पानी से फँकी लें।
सरसों का तेल–खाँसी, श्वास, कफ जमा हो तो सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर मालिश करें। लाभ होगा।
चना-रात को सोते समय भुने, सिके हुए चने खाकर ऊपर गरम दूध पीने से श्वास नली में जमा हुआ कफ निकल जाता है।
तुलसी- दमा के दौरे के समय ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे कफ पतला होकर निकले। कफ निकलने पर ही रोगी को आराम मिलेगा। तुलसी के रस में बलगम को पतला कर निकालने का गुण है। तुलसी का रस, शहद, अदरक का रस, प्याज का रस मिलाकर लेने से दमा में बहुत लाभ होता है। बच्चों के श्वास रोग में तुलसी के पत्तों का रस और शहद मिलाकर दें।
लौंग-लौंग मुँह में रखने से कफ आराम से निकलता है तथा कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। मुँह और साँस की दुर्गन्ध भी इससे मिटती है।
कॉफी-दमा का दौरा पड़ने पर गरमा-गरम कॉफी (बिना दूध, चीनी की) पीने से आराम मिलता है।
पानी–दमा का दौरा पड़ने पर हाथ-पैर गरम पानी में डुबोकर दस मिनट रखें। इससे बहुत आराम मिलता है।
शहतूत-शहतूत या इसका शर्बत कफनाशक है।
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