सैकेरिन- Saccharin in Hindi
सेकरिन एक कृत्रिम दानेदार पदार्थ है जो शक्कर से तीन सौ गुना ज्यादा मीठा होता है। इसमें कोई खाद्य गुण या कैलोरियाँ नहीं होतीं। पैट्रोलियम तथा कोलतार से प्राप्त यह पदार्थ 1950 से मधुमेह के रोगियों के लिये चीनी के विकल्प के रूप में काम आ रहा है। चूँकि इसमें मिठास बहुत ज्यादा होता है और इसका चीनी के बदले में उपयोग करना व्यापारिक दृष्टि से ज्यादा लाभदायक है इसलिये डिब्बाबन्द खाद्यों व पेयों में इसका धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है।
‘सेकरिन के सेवन से मोटापे तथा मधुमेह के शिकार रोगियों को लाभ पहुँचेगा, उनके रक्त में चर्बी की मात्रा घट जायेगी!’ यह केवल उपभोक्ता संस्कृति द्वारा अपने माल की बिक्री बढ़ाने की एक चाल है जबकि वास्तव में इससे ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता।
अमेरिका तथा कनाडा में किये गये कई अध्ययनों व शोध से पता चला है कि सेकरिन का उपयोग मानव शरीर में मूत्राशय के कैंसर की सम्भावना बढ़ा देता है। अमेरिका के विसकाउंसिन में एल्युम्नी प्रतिष्ठान ने 1971 में, अमेरिका पेय तथा खाद्य संघ ने 1977 में तथा कनाडा की स्वास्थ्य संरक्षण शाखा ने 1974 में कुछ चूहों को सेकरिन खिलाकर उन पर उसके प्रभाव की जाँच की तो पता चला कि जिन चूहों को सेकरिन खिलाई गई उनमें अधिकांश के मूत्राशयों में रसोलियाँ (ट्यूमर) पैदा हो गईं। इन प्रयोगों से अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने 1978 में यह निष्कर्ष निकाला कि सेकरिन में कैन्सर पैदा करने वाले तत्त्व बहुत ज्यादा है। चूँकि सारे शीतल पेयों तथा डिब्बाबंद खाद्यों में सेकरिन का बहुत उपयोग होता है। इसलिये इन निष्कर्षों के बाद अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैण्ड तथा यूरोप ने सेकरिन के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। पर भारत ऐसा देश है जो ऐसे मामलों में प्रायः उदासीन ही रहता है।
सौंदर्य प्रसाधन– महिलाएँ जो सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियों के रूप में साबुन, क्रीम, पाउडर, शैम्पू, लोशन आदि काम में लेती हैं उनमें खतरनाक कैमिकल्स होने के कारण वे चर्म रोग व कैन्सर सहज ही पैदा करने वाले होते हैं।
कैन्सर रक्त में उत्पन्न प्रदूषण-तत्त्वों का संचय है। भयभीत होने की अपेक्षा आशावादी बनें, मानसिक तनाव से बचें, अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करके इस रोग को दूर कर सकते हैं। इंग्लैण्ड के हीरी अनुसन्धान केन्द्र के अनुसार जो स्त्रियाँ 33 वर्ष की आयु से पूर्व गर्भ धारण करती हैं उनके स्तनों में गाँठ, कैन्सर नहीं होता। यह रोग प्रकृति की ओर जाने से, प्राकृतिक खान-पान पर निर्भर रहने से ठीक हो जाता है। जहाँ अब तक ऐलोपैथिक पद्धति ने इस रोग की असाध्यता का भान कराकर रोगी को भयभीत कर दिया है, वहीं भोजन के द्वारा चिकित्सा जीवन की आशा का बीज ध्वस्त होते शरीर में अंकुरित करती हुई आरोग्य की ओर ले जाती है। निम्न वस्तुओं का अमृत पान करते हुए जीने की ओर बढ़िये
फूल गोभी- प्रातः भूखे पेट पौन कप गोभी का रस नित्य पीते रहने से लाभ होता है।
करमकल्ला- प्रातः खाली पेट सर्वप्रथम कम-से-कम आधा कप करमकल्ले का रस नित्य पीयें। इससे आरम्भिक अवस्था में कैंसर ठीक हो जाता है।
भोजन- निरन्तर चल रही शोध से ज्ञात हुआ है कि भोजन में पाया जाने वाला रसायन ‘बीटा केरोटीन’ कैंसर को नष्ट कर देता है। ‘बीटा केरोटीन’ साबुत दाल, पत्ता गोभी, फूल गोभी, गाजर, नीबू, मौसमी परिवार के फलों में बहुतायत में मिलता है। ये फल, सब्जियाँ कैंसर के में रोगियों को काफी मात्रा में खिलानी चाहिएँ। तला हुआ भोजन कैन्सर पैदा करता है। तले हुए भोजन से कैन्सर कारक “पाइरोलाइसेट्स” की मात्रा हमारे पेट में जाती रहती है। अत: तला हुआ भोजन नहीं करना चाहिए।
अंगूर- कैंसर में पहले तीन दिन रोगी को उपवास करायें, फिर अंगूर सेवन कराना आरम्भ करें। कभी-कभी एनिमा लगायें। एक दिन में दो किलो से अधिक अंगूर न खिलायें। कुछ दिन के पश्चात् छाछ पीने को दी जा सकती है। अन्य कोई चीज खाने को न दें। इससे लाभ धीरे धीरे महीनों में होता है। इसकी पुल्टिस घावों पर लगा सकते हैं। इस रोग की चिकित्सा में कभी कभी अंगूर का रस लेने से पेट-दर्द, मलद्वार पर जलन होती है। इससे डरना नहीं चाहिए। दर्द कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। दर्द होने पर सेक कर सकते हैं।
बेल- हड्डी का कैन्सर, रक्त कैन्सर, कैन्सर में बेल का सेवन लाभदायक माना गया है। बेल का रस या किसी भी रूप में बेल खाना चाहिये।
तुलसी- तुलसी के पत्तों से निकाला गया सत यदि रेडियोथेरेपी से पूर्व मरीजों को दिया जाए तो उन्हें रेडियोथेरेपी से नुकसान नहीं होता। दरअसल रेडिएशन देने से जहाँ कैन्सरग्रस्त कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, वहीं सामान्य कोशिकाओं पर भी विपरीत असर पड़ता है। जिससे कोशिकाएँष्ट मरीजों को रेडिएशन थेरेपी देने से उल्टी-दस्त हो सकते हैं। खाना निगलने में कठिनाई आ सकती है अथवा अन्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
तुलसी का सत देने से कोशिकाओं की बर्दाश्त क्षमता (टोलरेंस लिमिट) बढ़ जाती है। कोशिकाओं में एन्टी-ऑक्सीडेन्ट्स तत्त्व बन जाते हैं जो विकिरणों से उत्पन्न हुए मुक्त मुलकों को नष्ट कर देता है। इससे रेडिएशन का असर कैन्सरग्रस्त कोशिकाओं तक ही सीमित हो जाता है।
गाजर- गाजर का रस लगातार पीने से शरीर के दूषित और विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। बड़े-बड़े असाध्य रोग, कैन्सर तक भी दूर हो जाते हैं। गाजर का एक गिलास रस प्रात: नाश्ते से पूर्व और शाम को दो बार नित्य पीना चाहिए। गाजर का रस 12 औंस, पालक का रस 4 औंस मिलाकर पीने से कैन्सर में विशेष लाभ होता है।
गेहूँ- गेहूँ का पौधा कैन्सर के उपचार में किस प्रकार सहायक है? डॉ. विगमोर ने कहा है कि कैन्सर भी शरीर की एक स्थिति मात्र है जो यह बताती है कि इस अद्भुत यन्त्र में कहीं कोई खराबी है। प्रकृति सदा शरीर को सन्तुलन में रखने का प्रयत्न करती है। कुछ लोग कैन्सर से पीड़ित होते हैं और कुछ को अन्य बीमारियाँ, यह इसलिए कि सबके जीवन जीने के ढँग अलग अलग है। एक महिला की छाती में कैन्सर था। सब प्रकार की चिकित्सा करा कर वह निराश हो चुकी थी। इसको सब प्रकार के रसों का आहार दिया गया और कुछ महीनों में वह ठीक हो गई। गेहूँ के पौधे में प्रदूषण विरोधी तत्त्व हैं और इसके सेवन से कैन्सर और अन्य रोगों से बचा जा सकता है। इस रस को लोग Green Blood की उपमा देते हैं। कहते हैं यह रस मनुष्य के रक्त से 40 फीसदी मेल खाता है।
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