दिल के लिए स्वास्थ्यप्रद आहार
नीबू- हृदय की कमजोरी दूर करने हेतु नीबू में विशेष गुण हैं। इसके निरन्तर प्रयोग से रक्त वाहिनियों में लचक और कोमलता आ जाती है और इनकी कठोरता दूर हो जाती है। इसलिए हाई ब्लडप्रेशर जैसे रोग को दूर करने में नीबू उपयोगी है। इससे बुढ़ापे तक हृदय शक्तिशाली बना रहता है एवं हार्टफेल होने का भय नहीं रहता। दिल घबराने, छाती में जलन होने पर ठण्डे पानी में नीबू निचोड़कर पीने से लाभ होता है।
अखरोट- अखरोट खाने से दिल तंदुरुस्त बना रहता है। सप्ताह में पाँच औंस की मात्रा में भी अखरोट के सेवन से हृदय रोगों की तकलीफ 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इससे हृदय की धमनियों को नुकसान पहुँचाने वाले हानिकारक कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) की मात्रा नियंत्रित रहती है। अखरोट के असर से शरीर में वसा को खपाने वाला तंत्र कुछ इस कदर काम करता है कि हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम हो जाती है। हालाँकि रक्त में वसा की कुल मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। अखरोट के कैलोरी समृद्ध होने बावजूद मरीजों का वजन नहीं बढ़ता और ऊर्जा स्तर बढ़ता है।
अनन्नास – अनन्नास में कई ऐसे रस पाए जाते हैं जो ‘पाचक रस’ (एंजाइम) के रूप में कार्य करते हैं। इसके नियमित सेवन से हृदय सम्बन्धी सामान्य रोगों से मुक्ति मिलती है। इसका अम्लीय गुण शरीर में बनने वाले अनावश्यक पदार्थों को बाहर निकाल देता है और शारीरिक शक्ति में वृद्धि करता है।
सेब- ताजा सेब या सेब का मुरब्बा 15-20 दिन खाने से हृदय की दुर्बलता, दिल बैठना ठीक होता है।
अमरूद- 100 ग्राम अमरूद में विटामिन ‘सी’ 299 से 450 मिली ग्राम तक होता है। यह हृदय को बल देता है स्फूर्ति और शक्ति देता है।
फालसा – (1) हृदय-रोग में पके फालसे का रस, पानी, सौंठ और शक्कर मिलाकर पीना चाहिए।
(2) हृदय की कमजोरी में दस ग्राम पके हुए फालसे, 5 दाने काली मिर्च, चुटकी भर सेंधा नमक लेकर घोट लें। उसमें एक कप पानी तथा थोड़ा-सा नीबू का रस मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित रूप से पीने से हृदय की दुर्बलता, अत्यधिक धड़कन इत्यादि विकार शान्त होकर शरीर में वीर्य, बल की वृद्धि होती है। गरमी की तकलीफ भी दूर होती है।
हींग- हींग दुर्बल हृदय को शक्ति देती है। रक्त के जमने को रोकती है। रक्त संचार सरलता से करती है।
गुड़- हृदय की दुर्बलता, शारीरिक शिथिलता में गुड़ खाने से लाभ होता है।
अदरक- हृदय दुर्बल हो, धड़कन कम हो, दिल बैठता-सा लगे तो सौंठ का गरम काढ़ा (क्वाथ) नमक मिलाकर एक प्याला प्रतिदिन पीने से लाभ होता है।
बैगन, उड़द और लीची हृदय-शक्ति-वर्धक है।
उड़द- रात को 50 ग्राम उड़द की दाल भिगो दें। प्रातः इसे पीसकर आधा गिलास दूध, स्वादानुसार मिश्री मिला कर पीयें। यह हृदय को शक्ति देता है।
शहद- शहद हृदय को शक्ति देने के लिए विश्व की समस्त औषधियों से सर्वोत्तम है। इससे हृदय इतना शक्तिशाली हो जाता है जैसे घोड़ा हरे जौ खाकर शक्ति प्राप्त करता है। शहद के प्रयोग से हृदय के पट्टों की शोथ दूर हो जाती है। जहाँ यह रोगग्रस्त हृदय को शक्ति देता है वहाँ स्वस्थ हृदय को पुष्ट और शक्तिशाली बनाता है, हृदय फेल होने से बचाता है। जब रक्त में ग्लाइकोजन के अभाव से रोगी को बेहोश होने का डर हो तो शहद खिलाकर रोगी को बेहोश होने से बचाया जा सकता है। शहद मिनटों में रोगी में शक्ति व उत्तेजना पैदा करता है। सर्दी या कमजोरी के कारण जब हृदय की धड़कन अधिक हो जाये, दम घुटने लगे तो 2 चम्मच शहद सेवन करने से नवीन शक्ति मिलती है। हृदय की दुर्बलता, दिल बैठना आदि कोई कष्ट हो तो शहद की एक चम्मच गरम पानी में डालकर पिलायें। एक चम्मच शहद प्रतिदिन लेने से हृदय सबल बनता है। एक चम्मच शहद में 100 कैलोरी शक्ति होती है।
हृदयरोग एवं कैंसर के उपचार में शहद- अमरीकी वैज्ञानिकों ने शहद को हृदयरोग एवं कैंसर से बचाव में काफी उपयोगी पाया है। शहद से प्रतिउपचायक रसायन स्रावित होते हैं जो डीएनए तथा कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाने वाले मुक्त मूलज अणुओं को नष्ट करते हैं। शोधकर्ताओं ने विभिन्न वनस्पतियों से तैयार शहद के गुणों को ओरेक (ऑक्सीजन रेडिकल एब्सॉरबेन्स केपेसिटी) विधि से विश्लेषण किया। फिनॉलिक रसायन मिश्रण की उपस्थिति की वजह से शहद की प्रति उपचायक क्षमता अधिक और सस्ती पाई गई। शहद में फिनॉलिक मिश्रण, एस्कॉर्बिक एसिड तथा एन्जाइम ग्लूकोज, ऑक्सीडेस, केटालास तथा पेरोऑक्सीडेस जैसे प्रति उपचायक पाए गए। गहरे रंग वाले शहद में अधिक ओरेक तत्त्व होते हैं और इसे मुक्त मूलजों का सफाया करने में अधिक कारगर पाया गया।
तुलसी– सर्दी के मौसम में तुलसी के 7 पत्ते, 4 काली मिर्च, चार बादाम- इन सबको ठण्डाई की तरह पीसकर आधा कप पानी में घोल कर नित्य पीयें। इससे हृदय को शक्ति मिलती है।
मौसमी- मौसमी का रस पाचनांग, मस्तिष्क और यकृत को शक्ति तथा स्फूर्ति देता है। इसका निरन्तर प्रयोग रक्त वाहिनियों को कोमल व लचकीली करता है। उनमें एकत्रित कोलेस्ट्रोल (विषैला पदार्थ जो हृदय को फेल करने में सहायक और रक्त प्रवाह में बाधा डालता है) शरीर से निकल जाता है और शरीर में ताजा रक्त, विटामिन और आवश्यक खनिज लवण पहुँचा देता है। हृदय और रक्त संस्थान, रक्त वाहिनियों और केपलरीज को शक्तिशाली बनाने में मौसमी सर्वोत्तम है।
सरसों का तेल– सरसों के तेल (मस्टर्ड ऑयल) में पकाया गया आहार खाने से हृदय रोग होने की सम्भावना है। यह जानकारी अमेरिका के विख्यात हृदय-रोग चिकित्सक डॉ. ए. ओल्सन ने एक भेंट में दी। डॉ. ओल्सन का कहना है कि सरसों के तेल में खाना पकाने से तेल में उपस्थित एसिड ‘कोलेस्ट्रोल’ में परिवर्तित हो जाता है, जिससे हृदय-रोग होते हैं।
आँवला—(1) पिसा हुआ हैं। यह नित्य दो बार लें। आँवला दूध के साथ पीने से हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
(2) सूखा आँवला और मिश्री समान भाग पीस लें। इसकी एक चम्मच की फँकी नित्य पानी से लेने से हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
(3) आधा भोजन करने के बाद हरे आँवलों का रस 35 ग्राम, आधा गिलास पानी में मिलाकर पी लें, फिर आधा भोजन करें। इस प्रकार 21 दिन सेवन करने से हृदय तथा मस्तिष्क की दुर्बलता दूर होकर स्वास्थ्य सुधर जाता है।
चौलाई- चौलाई का रस हृदय के रोगियों के लिए लाभदायक है। इसकी सब्जी भी खाई जा सकती है।
अरबी – हृदय रोग के रोगी को अरबी की सब्जी 25 ग्राम एक बार प्रतिदिन से हृदय-रोग में लाभ होता है।
चना– काला चना हृदय रोग के रोगियों के लिए लाभदायक है। लीची–लीची खाने से हृदय को शक्ति मिलती है।
दही – उच्च रक्त दाब, मोटापा तथा गुर्दे की बीमारियों में भी दही अत्यधिक लाभदायक बताया गया है। अमेरिका के प्रो. जार्ज शीमान के अनुसार दही हृदय-रोग की रोकथाम के लिए उत्तम वस्तु है। दही रक्त में बनने वाले कोलेस्ट्रोल नामक घातक पदार्थ को मिटाने की क्षमता रखता है, जो कि रक्त-शिराओं में जमा होकर रक्त प्रवाह को रोकता है। अत: दही का प्रयोग उत्तम है।
हृदय-दाह
केला- 2 केले 15 ग्राम शहद में मिलाकर खाने से हृदय के दर्द (हृदय-शूल) में लाभ होता है।
अजवाइन- हृदय-शूल में अजवाइन देने से शूल बन्द होकर हृदय उत्तेजित होता है।
अंगूर – अंगूर का रस पीने से हृदय-शूल में तुरन्त आराम आता है।
हृदय-शूल
इमली- मिश्री के साथ पकी हुई इमली का रस पिलाने से हृदय की जलन मिटती है।
आलू- हृदय की जलन में आलू का रस पीयें। यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुँह में चबायें तथा रस पी जायें और गूदे को थूक दें। इससे हृदयदाह में आराम मिलता है। हृदय दाह में रोगी को हृदय पर जलन प्रतीत होती है। इसका रस पीने से तुरन्त ठण्डक प्रतीत होती है।
लहसुन – जब ऐसा लगे कि हार्टफेल होने जा रहा है तो व्यक्ति को लहसुन की 4-5 कलियों को तुरन्त चबा लेना चाहिए। ऐसा करने से हार्टफेल नहीं होगा। इसके बाद लहसुन दूध में उबाल कर देते रहना चाहिए। हृदय-रोग में लहसुन देने से पेट की वायु निकलकर हृदय का दबाव हल्का हो जाता है, हृदय को बल मिलता है। कोलेस्ट्रोल को कम करने में लहसुन बड़ा प्रभावशाली है और इस प्रकार दिल की बीमारी को रोकने में कारगर है। लहसुन धमनियों को सिकुड़ने से बचाता है। सिकुड़ी हुई रोगग्रस्त धमनियों में जमे कोलेस्ट्रोल को निकालकर पुन: ठीक्र कर देता है। लहसुन हृदय रोग को रोकता है।
लौंग- तीन लौंग ठंडे पानी में पीस कर एक कप पानी में मिलाकर इसमें स्वादानुसार पिसी हुई मिश्री मिलाकर दो बार नित्य पीने से हृदय की जलन मिट जाती है।
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