अतीस (Aconitum Haterophylum)
प्रचलित नाम – अतीस ।
स्थान – अतीस के पौधे हिमालय में कुमायूं से हसोरा तक, शिमला तथा उसके आस-पास और चम्बा में काफी होते हैं। यह पहाड़ी जड़ी-बूटी की श्रेणी में आता है और पहाड़ के लोग सरलता से इसकी पहचान कर लेते हैं ।
विवरण- इसका पेड़ एक से तीन फुट तक ऊंचा होता है। इसकी डण्डी सीधी तथा पत्तेदार होती है, इसके पत्ते दो से चार इंच तक चौड़े और नोकदार होते हैं। इसकी जड़ से शाखाएं निकलती हैं, इस पर फूल बहुत लगते हैं। ये फूल एक या डेढ़ इंच लम्बे, चमकदार, नीले या पीले, कुछ हरे रंग के बैंगनी धारी वाले होते हैं। इसके बीज चिकने छाल वाले और नोकदार होते हैं। इसके नीचे डेढ़-दो इंच लम्बा और प्रायः आधा इंच मोटा कन्द निकलता है। इसका आकार हाथी की सूंड के सदृश होता है, जो ऊपर से मोटा और नीचे की ओर से पतला होता चला आता है।
उपयोगिता एंव औषधीय गुण
आयुर्वेद-अतीस गर्म, चरपरा, कड़वा, पाचक, जठराग्नि को दीपन करने वाला तथा पित्त, ज्वर, आमातिसार, खांसी, कफ, अतिसार, वात, विष, तृषा, कृमि, बवासीर, पीनस, पित्तोदर व्याधियों को नष्ट करने वाला है। वैद्य लोग ज्वर रोग में इसकी विशेष उपयोगिता बताते हैं। कई प्रकार के बुखार में इसके इस्तेमाल का सुझाव देते हैं ।
यूनानी- यह काबिज और आमाशय के लिए हानिकारक है। इसके अतिरिक्त यह कामोद्दीपक, क्षुधावर्द्धक, ज्वर प्रतिरोधक, कफ तथा पित्त जन्य विकारों को नाश करने वाला तथा बवासीर, जलोदर, वमन और अतिसार में लाभ करने वाला है।
1. ज्वर आने के पहले इसकी दो माशे की फंकी चार-चार घण्टे के अन्तर से देने से ज्वर उत्तर जाता है।
2. विषमज्वर, जूड़ी बुखार और पाली के बुखार में इसके चूर्ण को छोटी इलायची और वंशलोचन के चूर्ण में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
3. अतिसार और आमातिसार में दो माशे चूर्ण की फंकी देकर आठ पहर की भीगी हुई दो माशे सोंठ को पीसकर पिलाना चाहिए।
4. इसके चूर्ण में वायविडंग का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से कृमिरोग दूर होता है।
5. अकेली अतीस को पीसकर चूर्ण कर शीशी में भरकर रखना चाहिए। बालकों के तमाम रोगों के ऊपर इसका व्यवहार करना चाहिए। इससे बहुत लाभ होता है। बालक की उम्र को देखकर एक सें चार रत्ती तक शहद के साथ चटाना चाहिए।
6. अतीस, काकड़ासिंगी, नागरमोथा और बच्छ-चारों औषधियों को चूर्ण बनाकर ढाई रत्ती से 10 रत्ती तक की खुराक में शहद के साथ चटाने से बालकों के खांसी, बुखार, उल्टी, अतिसार जैसे रोग दूर होते हैं।
7. अतीस, नागरमोथा, पीपर, काकड़ासिंगी और मुलेठी-इन सबको समान भाग में लेकर चूर्ण करके 4 रत्ती से 6 रत्ती तक की मात्रा में शहद के साथ चटाने से बच्चों की खांसी, बुखार व अतिसार बन्द होता है।
8. अतीस और वायविडंग का समान भाग चूर्ण शहद के साथ चटाने से बच्चों के कृमि नष्ट होते हैं।
ज्वर की दवा – अतीस आधा आना भर की मात्रा में प्रयोग करने से करीब-करीब वैसा ही लाभ होता है, जैसे- कुनैन से होता है।
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