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आँवला (Euphorbiaceae) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आँवला (Euphorbiaceae) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आँवला (Euphorbiaceae) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आँवला (Euphorbiaceae)

प्रचलित नाम- आमलीका, आमला।

उपयोगी अंग- फल तथा बीज ।

परिचय- मध्यम कद का पेड़ । पत्र छोटे जो इमली के पत्तों जैसे दिखाई देते हैं। फूल लिंगी, बादामी पीतवणी, तथा छोटे-छोटे होते हैं। फल डालियों से सटे, गोल, चमकदार और छः रेखाओं से युक्त होते हैं। कच्चे फल हरे, पकने पर पीले, सूखने पर काले रंग के पड़ जाते हैं।

स्वाद- अम्ल, कषाय, मीठा।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

बल्य, मूत्रल, ग्राही, शीतल, फफूंदी, नाशक, मृदुरेचन, यकृतबल्य ।

रक्तस्राव, मधुमेह, प्रमेह, शिरःशूल, मूर्छा, कामला, खाज-खुजली, मूत्रकृच्छ, अर्श, अतिसार, प्रतिश्याय, अत्यार्त्तव तथा प्रशीताद (मलेरिया) रोग में लाभदायक।

मुखव्रण में पत्तों का क्वाथ लाभदायक। आँवला के चूर्ण तथा हल्दीचूर्ण मधुमेह में लाभदायक। (भोजन के बाद एक चम्मच सेवन)। प्रमेह में सूखे आंवले के चूर्ण का क्वाथ बनाकर, उसमें दो ग्राम हल्दी का चूर्ण एवं शहद मिलाकर सेवन से लाभ।

स्वर भेद में – गाय के दूध में आंवले का चूर्ण मिलाकर सेवन से फायदा। पित्त में सूखे आंवले का चूर्ण तथा इससे दुगुनी शर्करा और इससे भी दुगुना घी मिलाकर इसके सेवन से फायदा ।

मूत्रकृच्छ में- आँवले के ताजे फल का रस और गन्ने का रस मिलाकर सेवन से फायदा।

योनिदाह में- आंवले के फल के रस में मिश्री मिलाकर सेवन से फायदा।

शुक्रवृद्धि के लिये – ताजे आंवले के फल का रस, इसमें गाय का घी मिलाकर सेवन से फायदा।

बुढ़ापा दूर करने के लिये-सूखे आंवले का चूर्ण तथा तिल का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर घी तथा शहद के साथ 20 दिन तक सेवन से लाभ होता है।

पित्त शूल में – आंवले का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन से लाभ होता है। बुखार में बुखार के जिस रोगी को निद्रा तथा प्रस्वेद न आता हो एवं तृषा छिपती न हो, उसको आँवले तथा अदरख का रस घृत एवं मिश्री मिलाकर देना चाहिए। बुखार में आँवले के रस में घी का छौंक देकर सेवन करने से ज्वर समाप्त हो जाता है।

रक्तार्श में- आंवले के रस में दही के ऊपर की मलाई मिलाकर खिलाना चाहिए।

श्वेत प्रदर में- (1) आँवले के बीज के चूर्ण में मधु तथा मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए।

(2) आँवले का चूर्ण या रस में शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए।

रक्तपित्त में- आंवले के स्वरस में या चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए। इसमें स्वरस खास लाभकारी है।

आंखों में तिमिर- अल्पदृष्टि में आमलकी चूर्ण, रसवंती चूर्ण, मधु एवं घृत में साबित की हुई रसक्रिया का अंजन करवाना चाहिए, इससे नेत्र पटल एवं तिमिर रोग सही हो जाते हैं। मूत्रकृच्छ्र में तकलीफ होती हो तो आँवले का स्वरस 16 तोला पिलाना चाहिए, मूत्र होकर शूल फौरन ठीक हो जाता है। कास में दूध में उबाला आँवले का चूर्ण घी मिलाकर सेवन कराना चाहिए। प्रमेह में देह शुद्धि करवा कर आँवले के रस के साथ हरिद्रा चूर्ण एवं मधु मिलाकर सेवन कराना चाहिए। वाजीकरण के लिये आँवले के चूर्ण में आँवले के रस की 21 भावनाएँ देनी चाहिए, इस चूर्ण में से 1/4 तोला प्रतिदिन सुबह-शाम मिश्री तथा मधु के साथ चटाकर ऊपर से दूध पिलाना चाहिए। इससे 80 वर्ष का वृद्ध भी युवक के समान काम-क्रीड़ा में प्रवृत्त हो सकता है।

पाण्डुरोग में- आँवले का रस तथा इक्षु का रस मधु के साथ मिलाकर रोगी को पिलाना चाहिए। मूर्छा में आँवले के स्वरस से सिद्ध किया हुआ घृत, मधु के साथ सेवन कराना चाहिए। रक्त प्रदर में आँवले का चूर्ण मधु एवं मिश्री के साथ चटाना चाहिए या जल के साथ पिलाना चाहिए। मसूरिका में आँवले का चूर्ण, गुड़ के साथ सेवन कराना चाहिए।

मात्रा – फल का चूर्ण 3-10 ग्राम प्रतिदिन दो बार प्रातः एवं सायं । फल का ताजा रस-25 मि. ली. प्रतिदिन दो बार प्रातः एवं सायं ।

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