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अफसन्तीन (Artenaisia Absinthium) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अफसन्तीन (Artenaisia Absinthium) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अफसन्तीन (Artenaisia Absinthium) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अफसन्तीन (Artenaisia Absinthium)

प्रचलित नाम- विलायती अफसन्तीन ।

उपलब्ध स्थान- यह औषधि और इसकी कुछ जातियां भारतवर्ष में पैदा होती हैं, मगर आयुर्वेदीय ग्रन्थों में इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता। विशेषकर यह औषधि उत्तरी अफ्रीका, साइबेरिया, मंगोलिया और भारतवर्ष में हिमालय पर्वत के ऊपर 10,000 से 12,000 फीट तक ऊंचाई पर काश्मीर, तिब्बत, कुमाऊं, नेपाल इत्यादि प्रान्तों में उत्पन्न होती है।

परिचय- यह एक तरह का झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएं सीधी और सरल होती हैं। पत्ते रेशम की भांति मुलायम, रुएंदार और हरे रंग के होते हैं। इसके पुष्प पीले होते हैं। इसके बीज बारीक-बारीक और गोल दाने की भांति होते हैं।

इसकी छाल कुछ ललाई लिये हुए बादामी रंग की होती है। इसकी गंध अधिक तीव्र, उग्र, अप्रिय और स्वाद अधिक कड़वा होता है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण 

यह औषधि गर्म तथा रुक्ष है। यह दिमाग और स्नायु-मंडल को अव्यवस्थित करने वाली और सिरदर्द को उत्पन्न करने वाली है। इसके अंदर संकोचक गुण भी है। यह यकृत को बल पहुंचाने वाली और कामला रोग में है। इसका शर्बत आमाशय और यकृत को शक्ति देता है।

बवासीर के भीतर भी यह औषधि लाभदायक है। इसके क्वाथ का भपारा देने से कानदर्द में आराम मिलता है। पेट के कीड़ों को मारने की शक्ति इस औषधि के अन्दर है।

1. अफसन्तीन का पौधा कड़वा, बलदायक, सुगन्धित, आमाशय को बल देने वाला, अग्निदीपक, बुखार और कृमियों को नष्ट करने वाला, रज-प्रवर्तक, मस्तिष्क को उत्तेजना देने वाला व निद्राजनक होता है।

2. इसका उपयोग अजीर्ण, केंचुए और सूती कीड़े को समाप्त करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा विषम ज्वर, रजकष्ट, मिर्गी, मस्तक की दुर्बलता इत्यादि रोगों में भी इसके क्वाथ का उपयोग किया है जाता है।

3. अफसन्तीन आधा सेर अर्क में, 3 सेर गुलाबजल और 2 सेर जल डालकर दुबारा अर्क खींच लें। इसे पेट के रोगों के लिए थोड़ा-थोड़ा पीने से फायदा होता है।

4. 1.5 तोला की मात्रा में इस अर्क को 6 तोला अर्क सौंफ, और 2 तोला शर्बत कसूस के साथ पीने से यह यकृत की बीमारियों को दूर कर, सूजन से होने वाले बुखार को समाप्त करता है।

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