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कपास की दवा एंव इसके फायदे | Cotton medicine and its benefits in Hindi

कपास की दवा एंव इसके फायदे | Cotton medicine and its benefits in Hindi
कपास की दवा एंव इसके फायदे | Cotton medicine and its benefits in Hindi

कपास (Indian Cotton)

प्रचलित नाम- कपास, कार्पासी ।

उपयोगी अंग- मूल, पत्र, पुष्प तथा बीज ।

परिचय- यह लगभग चार फुट ऊंचा गुल्म रूपी पौधा होता है। इसके पत्ते पंजाकार (3-7 खण्डी) उप-पत्र युक्त होते हैं। पुष्प पीतवर्णी, फल गोलाकार होते हैं, जिसके अंदर रुई में लिपटे हुए बीज होते हैं। यह भारतवर्ष की सबसे पुरानी वनस्पति है।

स्वाद- मीठा ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

कपास हल्की, मीठा, वातनाशक है। इसके पत्ते कर्णपीड़ा, कर्णनाद, बहरापन में फायदेमंद हैं। बीज वायुनाशक, बल्य, मेघा बल्य, स्तन्यजनन हैं। फूल उत्तेजक मूत्रल एवं इसमें मृदुरेचक (तेल) होता है।

इसके मूल की छाल गर्भाशय संकोचन तथा आर्त्तवजनन, श्वेत प्रदर में लाभदायक होती है। बीज का प्रयोग प्रसूता के लिए दुग्धवर्धक होता है।

प्रवाहिका, शीतज्वर में – इसके फूलों का शरबत लाभदायक है। मानसिक रोग में भी फूलों का शरबत देना चाहिए। पत्तों का उपयोग आमातिसार में लाभदायक है। प्रवाहिका में इसके बीजों की चाय बनाकर देने से फायदा होता है। मानसिक रोगों में इसके फूलों का शरबत बनाकर देने से फायदा होता है। रूई को जलाकर जख्म में भरने से रक्तस्राव रुक जाता है तथा घाव जल्दी अच्छा हो जाता है। प्रसव के पश्चात् इसकी छाल का क्वाथ पिला देने से गर्भाशय का संकोचन होता है। श्वेत प्रदर में इसके मूल चावल के मांड के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

कुष्ठरोग में – कपास के मूल की छाल तथा फूल को जल में पीसकर, कुष्ठग्रस्त भाग पर लेप करने से फायदा होता है।

कान (श्वास अवरोध को सही करने वाली) स्त्राव में – शाल वृक्ष के कांड की छाल का थोड़ा चूर्ण कान में डालकर उस पर कपास के कच्चे फल का रस, मधु के साथ टपकाने से, कर्णस्राव में लाभ होता है।

क्षतजन्य तृषा में- कपास के मूल का क्वाथ पीने से लाभ होता है। प्रदर में कपास के मूल को चावल के मांड के साथ पीसकर पीने से लाभ होता है।

कफजन्य अतिसार में – कपास तथा पीपल का स्वरस शहद में मिलाकर सेवन से लाभ होता है।

बिच्छू दंश में – कपास के फल को अच्छी प्रकार घोटकर उसमें थोड़ा-सा घी डालकर लेपकर बांध देना चाहिए, दंश की वेदना कम हो जाती है।

सभी प्रकार के शोथ में- मूल रहित रुई वाले पौधे को जलाकर राख कर, इस राख से दुगने चावल को दूध में उबालकर, घी के साथ सेवन करने से फायदा होता है।

ललाट (कपाल) का कुष्ठ- मूल, छाल, पुष्प इन सबका क्वाथ तथा क्वाथ में खट्टी छाछ मिलाकर तेल को पकाना चाहिए, इस तेल का प्रयोग कपाल के कुष्ठ पर लगाने से फायदा होता है।

पुत्र कामना के लिए- कपास के कोमल फल सात दिन तक दूध में  पीसकर स्त्री को पिलाया जाये (पुष्य नक्षत्र में) तो इससे पुत्र की इच्छा पूरी होती है।

गर्भपात के लिए- बिनौले का उपयोग किया जाता है। कपास के मूल की त्वचा का क्वाथ (प्रवाही सत) भी दिया जाता है। यह कष्टार्त्तव और नष्टार्त्तव में भी देने योग्य होता है। मूल त्वचा से गर्भाशय संकोचन अच्छा रहता है।

प्रवाहिका में- बिनौले का फांट पिलाने से फायदा होता है।

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