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केवड़ा (Screw Pine) के फायदे एंव औषधीय गुण

केवड़ा (Screw Pine) के फायदे एंव  औषधीय गुण
केवड़ा (Screw Pine) के फायदे एंव औषधीय गुण

केवड़ा (Screw Pine)

प्रचलित नाम- केवड़ा, केतकी, कंटदला।

उपयोगी अंग- मूल, पत्र, पुष्प एवं फल तथा फूलों का तेल ।

परिचय- यह एक बड़ा गुल्म है, जो पेड़ जैसा दिखाई देता है। हवाई स्तंभ में मूल की मौजूदगी इस पौधे की विशेषता है। पत्ते सरल शाखाओं के अंत में समूह में रहते में हैं। पत्तों के किनारे तथा मध्य शिरा (अध:पृष्ठ) पर तीक्ष्ण कंटक होते हैं। फूल हल्के पीले रंग के, छोटे-छोटे सुगंधित एवं मंजरियों में होते हैं। केवड़ा अधिक सुगन्धित गुल्म है। इसके फूलों के अर्क से केवड़ा जल बनाया जाता है। खाद्य पदार्थों पर केवड़ा जल छिड़ककर स्वाद व सुगन्ध बढ़ायी जा सकती है।

स्वाद – तिक्त ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

उत्तेजक, उद्वेष्टननिरोधी, शोथहर, सुगंधित, मेधावर्धक, हृदयबल्य।

कुष्ठरोग, चेचक, फिरंग, काण्डु, श्वासरोग, शिरःशूल, आमवात, योनि रोगों में असरकारी। चर्मरोगों में, फोड़ों, व्रण तथा अस्थिभग्न, मूत्रकृच्छ्र अशक्ति (कमजोरी) और मूर्छा में इसका प्रयोग लाभदायक। इसका अर्क ज्वर में देने से पसीना आकर ताजगी महसूस होती है। चर्मरोगों में इसके पत्रों को पीसकर लेप करने से फायदा होता है। शिरः शूल, कटिशूल एवं आमवातादि में इसके तेल की मालिश से लाभ होता है। मूत्रकृच्छ्र में इसके तने के आगे के भाग के कल्क से, केतकी के ही स्वरस में, साबित किया हुआ घृत खाने से मूत्रकृच्छ्र समाप्त हो जाता है। वातज गुल्म में इसके पंचांग को जलाकर क्षार विधि से निर्मित क्षार तेल के साथ पिलाने से गुल्म नष्ट हो जाता है। रक्त प्रदर में इसके मूल का प्रयोग किया जाता है। प्रमेह में इसके मूल से बनी बंग भस्म के सेवन से फायदा होता है। चिरकाल से होने वाले शिरःशूल में तथा अन्य शिरोरोगों में इसका लेप लाभदायक है।

अपस्मार में इसके फूल विन्यास पर (नरकेसर) का चूर्ण (पाउडर) तथा इसके पुष्प समभाग लेकर एकत्रित कर पीस लें, इस चूर्ण को सूंघने (नसवार की तरह) से लाभ होता है। सभी तरह की उष्णता से इसके पत्रों के स्वरस में पिसा हुआ जीरा तथा मिश्री मिलाकर सात रोज तक पिलाना चाहिए।

पथ्य- चावल, नमक रहित

कंठरोग में- (कंठ रोहिणी-डिप्थेरिया) केतकी के मंजरी की बीड़ी बना धूम्रपान करने से वमन होकर कफ बाहर निकल जाता है, जिससे कंठ रोहिणी रोग समाप्त होता है। इस औषधि के साथ इंद्रवारुणी के फल का फलावरण भी प्रयोग में लाया जाता है। वमन और अतिसार में इसके कंद (भूमिजन्य मूल) का स्वरस पिलाने से फायदा होता है।

मात्रा- अर्क- चार से छः तोला ।

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