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कन्थारी (Capparis Seplaria) के फायदे एंव औषधीय गुण

कन्थारी (Capparis Seplaria) के फायदे एंव औषधीय गुण
कन्थारी (Capparis Seplaria) के फायदे एंव औषधीय गुण

कन्थारी (Capparis Seplaria)

प्रचलित नाम – कन्यारी ।

उपलब्ध स्थान – यह वनस्पति भारतवर्ष, श्रीलंका, इण्डोचायना, मलाया। तथा ऑस्ट्रेलिया के खुश्क प्रान्तों में उत्पन्न होती है।

परिचय – इसकी बेलें खेत की बाड़ों पर, बबूल पर तथा थूहर की झाड़ियों पर फैल जाती हैं। इसकी बेलें अधिक तीक्ष्ण और कठोर, अनीदार, कांटों वाली सफेद होती हैं। इसके पत्ते लम्बे, गोल, संकरे तथा छोटे होते। हैं। चैत्र-वैशाख माह में इस पर सफेद रंग के छोटे फूलों की गुच्छियां आती हैं। इसके फल गोल, मुलायम और पकने पर काले रंग के हो जाते हैं। इस वनस्पति की दो-तीन जातियां होती हैं। औषधीय रूप में सभी जातियां एक सी उपयोगी हैं।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद – यह वनस्पति कड़वी, उष्ण, पौष्टिक, अग्निवर्धक, रुचिकारक, कफवात को दूर करने वाली, ज्वर निवारक, धातुपरिवर्तक, चर्मरोग नाशक, तथा अर्बुद, प्रदाह और मांशपेशियों की पीड़ा में फायदा पहुँचाती है। इसकी पिसी हुई जड़, गोधेरक नामक सर्प के काटने पर नाक के द्वारा सुंघाई जाती है।

नेत्र की सूजन पर इसकी जड़ अफीम के साथ पीसकर नेत्र पर लगाई जाती है, जिससे सूजन मिट जाती है। उदर शूल पर इसकी जड़ काली मिर्च के साथ पिलाई जाती है। रक्त विकार तथा चर्म रोगों पर इसके पत्तों का काढ़ा दिया जाता है। काढ़ा बनाने के लिए अगर पत्ते उपलब्ध न हों तो इसकी छाल या जड़ का काढ़ा बनाकर दो-दो चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पिला देना चाहिए।

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