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कंकोड़ा (Momordica Dioica Roxburg) के फायदे एवं औषधीय गुण

कंकोड़ा (Momordica Dioica Roxburg) के फायदे एवं औषधीय गुण
कंकोड़ा (Momordica Dioica Roxburg) के फायदे एवं औषधीय गुण

कंकोड़ा (Momordica Dioica Roxburg)

प्रचलित नाम- कंकोड़ा, खिकोड़ा।

परिचय – यह लता पूरे भारतवर्ष में पायी जाती है। कंकोड़े की बेल अक्सर झाड़ी और खेत की बाड़ों के ऊपर फैल जाती है। इसका फल दिखने में गोल धतूरे की तरह होता है, जिसके ऊपर बारीक-बारीक काँटे सरीखे रोएँ होते हैं। इसके पत्ते ककड़ी के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल कच्चे में हरा तथा पकने पर लाल हो जाता है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद– कंकोड़ा कड़वा, तीखा, गरम, रुचिकारक एवं अग्निदीपक होता है। यह वात, कफ, पित्त और जहर का नाश करने वाला है। इसके फल मीठे एवं पचने में कटु तथा अग्निप्रदीपक होते हैं। पत्ते रुचिकारक, वीर्यवर्द्धक तथा त्रिदोषनाशक होते हैं।

1. इसके फल गुल्म, कफ, पित्त, शूल, कुष्ठ, वायुप्रकोप एवं त्रिदोषनाशक होते हैं।

2. इसके पत्ते कृमि, बुखार, क्षय, श्वांसरोग, खांसी, हिचकी तथा बवासीर में प्रयोग किये जाते हैं।

3. इसकी जड़ मधु के साथ मस्तक रोग में हितकारी है। इसे भूनकर, पीसकर बवासीर के रक्त को बन्द करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। यह आंत की तकलीफों को भी दूर कर देती है। इसे पीसकर पिलाने से सभी तरह के विष दूर हो जाते हैं। जड़ों को पीसकर पीने का ढंग यह है कि कंकोड़ा की ताजी जड़ लाकर अच्छी तरह धो लें। फिर खरल में अच्छी प्रकार कूटकर, रस को छान कर पियें।

बांझ कंकोड़ा- यह एक कंकोड़ा की ही जाति होती है। इस पर फल नहीं आते। इसका उपयोग खासकर विषों को दूर करने के लिये किया जाता है। इस वनस्पति की जड़ 20 ग्राम की मात्रा में जल के साथ पीसकर पिलाने से सभी तरह के सर्पविष सहित सभी प्रकार के स्थावर एवं जंगमविष समाप्त हो जाते हैं।

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