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करवीर (Scented Oleander) के फायदे एवं औषधीय गुण

करवीर (Scented Oleander) के फायदे एवं औषधीय गुण
करवीर (Scented Oleander) के फायदे एवं औषधीय गुण

करवीर (Sweet Scented Oleander)

प्रचलित नाम- करवीर (सफेद तथा लाल) । उपयोगी अंग- मूल एवं पत्र ।

परिचय-एक सदा हरित गुल्म होता है, जिसकी शाखाएँ मजबूत एवं अक्सर दस फीट ऊँचा होता है। पत्ते पर्व पर 3-3 रहते हैं, जो नुकीले रहते हैं। पुष्प सफेद या गुलाबी, सुगंधित होते हैं। फलियां गोल तथा चिपटी रहती हैं। इसके अंगों को तोड़ने से श्वेत दुग्ध रस निकलता है।

स्वाद- तीखा ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

जैवघ्न, उद्वेष्टकर, फंफूदीन, कीटनाशक, तनुकारक, ज्वरहर, शोथहर। इसके लेप को तीन रोज़ तक करने से लिंग में जागृति आती है। सफेद केश, काले करने के लिए इसके पत्र तथा उतरन (डीमिया एक्सटेन्सा) के पत्रों को दूध में पीसकर, इसके रस का सिर पर लेप (बार-बार) करने से काले केश आते हैं। किन्तु असमय सफेद हो चुके बालों में ही इसका यह गुण सामने आता है। बुढ़ापे में सफेद हो चुके बालों पर इस्तेमाल करने पर प्रभाव कम रहता है। करवीर के तीन प्रकार अक्सर पाए जाते हैं सफेद करवीर तीक्ष्ण, तिक्त, ऊष्ण वीर्य और ग्राही है। जिसके उपयोग से मेह, कृमि, कुष्ठ, व्रण, अर्श नष्ट होते हैं। लाल करवीर—शोधक, तीखा, पाक, कटु तथा लेप करने से कुष्ठ नाशक गुलाबी करवीर-शिरःशूल, कफ और वातनाशक। मूल की छाल की मात्रा एक रत्ती। विषम बुखार में इसके मूल को रविवार को कान पर बाँचना चाहिए। यह सर्वप्रकार के बुखार में प्रशस्त है। शिरोरोग में इसके सूखे हुए मूल मूत्रल गुण वाले हैं।

कुष्ठरोग, व्रण, अर्श, प्रमेह, दाबह्मसी, हृदयबल्य, ज्वरहर, वेदनाहर, कैंसर नाशक, शोथहर, कुण्डु, नेत्र प्रकोप, त्वचा रोग। इसका आंतरिक प्रयोग अधिक सतर्कता पूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यह अधिक मात्रा में हृदय के लिए घातक है। इसका प्रयोग खाली पेट नहीं करना चाहिए। सर्पदंश में इसकी जड़ की छाल 1-2 पत्ते थोड़े-थोड़े अंतर में देनी चाहिए, जिसके कारण वमन तथा एक या दो दस्त हो जाते हैं। अपने विरेचक गुण की वजह से यह अधिक मात्रा में लेने से अधिक दस्त आ जाने से शारीरिक दुर्बलता का कारण बन जाता है। नपुंसकता में सफेद करवीर के मूल, जायफल, अफीम, इलायची तथा सेमल की छाल सम प्रमाण में मिलाकर चूर्ण बनाया जाता है, इसको बारीक वस्त्र से छानकर, इस चूर्ण की आधी माशा मात्रा में तिल का तेल डालकर गर्म करें, फिर ठंडा कर शीशी में भर लेना चाहिए। मूत्रेन्द्रिय के नीचे तथा ऊपर का भाग छोड़ शेष भाग पर लगाने से शरीर में चमक आती है। दिमाग के वेदनायुक्त भाग पर लगाने से फायदा होता. है। पक्षाघात (अंगघात) में सफेद करवीर के मूल की छाल, सफेद गुंजा की दाल तथा काला धतूरा के पत्र के इन सबको सम मात्रा लेकर पीसकर कल्क बना लें, इसके बाद चार गुने जल में तथा कल्क के समभाग तेल मिलाकर, कलई वाले बर्तन में मंदाग्नि पर पकाना चाहिए। पानी जल जाने पर उतारकर वस्त्र से छानकर, इस तेल की मालिश करने से अंगघात ठीक हो जाता है। हृदय एवं हृदयोदर में इसके मूल की छाल कुछ मात्रा में (भोजन पश्चात्) सेवन से मूत्र होता है तथा हृदयोदर वेदना कम होती है। ज्यादा मात्रा के सेवन से शरीर ठंडा पड़ जाता है तथा धड़कन गति धीमी होकर हृदय तथा श्वासोच्छवास क्रिया बंद हो जाती है। इसलिए सावधानी के साथ कम मात्रा में ही सेवन करें।

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