यकृत रोग (Liver Diseases)
दाहिने भाग की पसलियों के नीचे यकृत होता है। यकृत रोग आरम्भ होते ही कम्प देकर ज्वर (बुखार) आता है। बाद में बुखार तो शान्त हो जाता है, लेकिन यकृत की बीमारी बनी रहती है। रोग जब धीरे-धीरे पुराना हो जाता है तब यकृत कठोर एवं पहले से बड़ा हो जाता है। यकृत के स्थान को दबाने से दर्द करता है। मेहनत से यकृत में दर्द होता है। अपने आप भी बिना श्रम के दर्द होता रहता है। जीभ सफेद, सिर दर्द, कमजोरी, रक्ताल्पता, अपच, दाहिने कन्धे के पीछे दर्द, टटूटी आँवयुक्त, कीचड़ जैसी, मुँह का बेस्वाद आदि लक्षण प्रकट होते हैं। कब्जी और पेट में गैस जमा होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। रोग जब बढ़ता है तो घातक रूप ले लेता है और अन्त में यकृत का संकोचन होकर रोगी की मृत्यु हो जाती है। अमेबिक पेचिश पुरानी होने पर अमेबा रोगाणु यकृत में जाने से पुराना मलेरिया ज्वर, कुनैन या पारे का दुर्व्यवहार, अधिक शराब पीना, गरम जगह रहना, अधिक मिठाई खाना आदि कारणों से यकृत रोग की उत्पत्ति होती है। आठ साल से कम आयु के प्राय: बहुत-से बच्चों का यकृत खराब हो जाता है, जिससे बच्चे पुष्ट नहीं होते। बराबर रोगी, आँखें व चेहरा सफेद, रक्तहीन दिखते हैं।
यकृत का सूत्रणरोग (Cirrhosis of the Liver)
Cirrhos = भूरा यकृत का सूत्रणरोग या सिरोसिस ऑफ द लीवर (Cirrhosis of the Liver) में यकृत कठोर तथा आकार में छोटा हो जाता है। ज्वर कामला, यकृत प्रदेश पर दर्द, अन्न से अरुचि, वमन, अतिनैर्बल्य रक्तपित्त की प्रवृत्ति के लक्षण यकृत के कार्यों के मंद हो जाने के कारण होते हैं। रोगी दुर्बल, पीला, नीली नसें, उभरा चेहरा होता है। आँतों में से प्रोटीन भोजन से उत्पन्न विषों के रक्त में चले जाने से उनके दुष्प्रभाव से मृत्यु हो जाती है। यह एक घातक रोग है। परन्तु जब कोई बाह्य या आभ्यन्तर विषद्रव्य थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लगातार यकृत में प्रवेश करता रहे तो कुछ एक मृत हुए सैलों के स्थान पर नये सैल अतिमात्रा में उत्पन्न हो जाते हैं, और कुछ एक मृत हुए सैलों के स्थान पर नया स्नायुतन्तु आ जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि यकृत आकार में बड़ा तथा कठोर हो जाता है। इसे चिरस्थाई वृद्धि कहते हैं। यह 40-50 वर्ष की आयु में पुरुषों को अधिक होता है।
यकृत के रोगी को फलों का रस, सलाद, हरी सब्जियों का रस, खट्टे फल, अनन्नास, मौसमी, नारंगी, मीठे पदार्थ—अरबी, आलू, गाजर, चुकन्दर, खजूर, अंजीर, किशमिश, आम, पपीता, शहद आदि लाभदायक हैं। तले हुए पदार्थ चाय, कॉफी, तेज मसाले, तम्बाकू का सेवन बन्द करना चाहिए। शराब तो यकृत रोगी के लिए जहर के समान है, बिल्कुल बन्द कर देनी चाहिए।
यकृत के रोगी को घी और चीनी बहुत कम खानी चाहिए। ‘अपच‘ में बताई गई चीजों का सेवन भी लाभदायक है। ‘पीलिया’ में वर्णित पीपल का सेवन भी लाभदायक है। लीची, चुकन्दर, लौकी, बथुआ, छाछ का सेवन यकृत रोगों में लाभदायक है, ये यकृत को शक्ति देते हैं।
लीवर रोग के घरेलू उपाय
नीबू-नीबू के चार भाग करें पर टुकड़े अलग न हों। एक में नमक, एक में काली मिर्च, एक में सौंठ, चौथे में मिश्री या शक्कर लगा दें, रात को प्लेट में रखकर ढक दें। सुबह तवे पर गर्म कर चूसने से यकृत (लीवर) सही होगा, भूख बढ़ेगी। ऐसे मरीज के लिए इससे बढ़कर कोई औषधि नहीं है। -श्री हुकुमतराय, अजमेर का अनुभूत
धनिया—धनिया, सौंठ, काला नमक का चूर्ण बनाकर रखिए और दिन में तीन बार सेवन कीजिए। इससे मन्दाग्नि ठीक होती है और यकृत को शक्ति, स्फूर्ति मिलती है। भूख लगती है।
सेब—सेब यकृत रोगों में लाभदायक है। इससे यकृत को शक्ति मिलती है।
छाछ, बथुआ, लीची, अनार, जामुन, चुकन्दर, आलूबुखारा यकृत को शक्ति देता है, गैस और कब्ज दूर करता है। ये नित्य खायें।
लौकी-लौकी को आँच में सेक कर भुर्ता-सा बना लें, फिर इसका रस निकाल लें और रस में मिश्री मिला कर पीयें। यह यकृत की बीमारी में लाभप्रद है।
चावल-सूर्योदय से पहले उठकर मुँह साफ करके एक चुटकी कच्चे चावल की फँकी लें। यह प्रयोग यकृत को मजबूत करने के लिए बड़ा अच्छा है। जिन लोगों ने इस प्रकार चावल लिए हैं, उन्हें लाभ हुआ है।
नमक–आधा चम्मच सेंधा नमक, चार चम्मच राई पानी डालकर पीसकर यकृत-स्थान पर पाँच मिनट लेप करें और फिर धोकर घी लगा दें। इससे यकृत में हो रहे दर्द में लाभ होता है।
पान—खाने के पान के चिकनी ओर तेल लगाकर गर्म करके यकृत स्थान पर बाँधने से यकृत के दर्द में लाभ होता है।
पीपल-चार पीपल पीसकर आधा चम्मच शहद में मिलाकर चाटें। बढ़े हुए यकृत में लाभ होता है। पपीता-पपीता पेट साफ करता है। यकृत को ताकत देने वाला है। छोटे बच्चे जिनका यकृत खराब रहता है, उन्हें पपीता खिलाना चाहिए।
गाजर- यकृत रोग ग्रस्त, पित्तदोषग्रस्त व्यक्तियों को बार-बार गाजर खानी चाहिए। फ्रांस में इन रोगों के लिए गाजर को उपयोगी समझते हैं। खरबूजा- यह यकृत की सूजन मिटाता है। नित्य दो बार खायें।
करेला-3 से 8 वर्ष तक के बच्चे को आधा चम्मच करेले का रस नित्य देने से यकृत ठीक रहता है। यह पेट साफ रखता है। यकृत बढ़ने पर 50 ग्राम करेले का रस पानी में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
बैंगन – इससे बढ़े हुए यकृत में आराम होता है।
अजवाइन – 15 ग्राम अजवाइन प्रात: मिट्टी के बर्तन जैसे सिकोरे में डाल कर भिगो दें। दिन में मकान में, रात को खुले में, ओस में रखें। दूसरे दिन प्रातः छानकर पानी पीयें। यह लगातार 15 दिन पीयें। इससे बढ़ा हुआ यकृत ठीक हो जाता है। भूख लगती है।
तुलसी-एक गिलास पानी में 12 ग्राम तुलसी के पत्ते उबाल कर चौथाई रहने पर छानकर पीने से यकृत का बढ़ना एवं यकृत के अन्य रोग ठीक हो जाते हैं।
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