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अडूसा (Atotonda Vasica) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अडूसा (Atotonda Vasica) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
अडूसा (Atotonda Vasica) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

अडूसा (Atotonda Vasica)

प्रचलित नाम- वासा, अडूसा ।

उपयोगी अंग- पंचांग, पत्र, पुष्प, मूल की छाल ।

परिचय- सदा हरित अति शाखित क्षुप, 48 फुट ऊँचाई वाले, पत्र अभिमुखी, दोनों ओर से नोकदार, पुष्प सफेद जो निपत्र एवं निपत्रिका युक्त होते हैं।

स्वाद- तीखा एवं कटु ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

कफ निःसारक, श्वसनी विस्तरण, जन्तुघ्न, मूत्रल, शोथहर, उत्तेजक, कृमिघ्न, कुष्ठघ्न ।

कास में, जीर्ण वसनी शोथ, श्वसरोग में, आमवात, श्वसन तंत्रगत विकार, ज्वरन, क्षयन्न, उद्वेष्टन निरोधी। इसके पत्रों का उपयोग कफ विकारों में ज्यादा होता है, श्वसनी शोध में मुख्य लाभदायक। इसका स्वरस (1/2 से डेढ़ तोला) आर्द्रक स्वरस एवं शहद के साथ मिलाकर देते हैं।

रक्तपित्त- इसका स्वरस शहद के साथ सेवन से लाभ होता है।

मलेरिया में- पत्र का चूर्ण लाभदायक है। आध्मान, अतिसार एवं प्रवाहिका में- पत्रों का स्वरस दिया जाता है। इससे आंत्रस्थ जीवाणुओं का नाश होता है एवं अनाज का सड़ना रुकता है।

रक्तपित्त में- इसके पत्रों का रस शहद के साथ एक-एक कप रोजाना तीन बार पिलाना चाहिए। या तीन मास के भीतर सुखाये हुए पत्रों का चूर्ण मधु के साथ चटाना चाहिए या पुष्पों की छाया में शुष्क चूर्ण दो ग्राम शहद के साथ चटाना चाहिए।

राजयक्ष्मा (टी.बी.) में- इसमें खाँसी के साथ बलगम आती हो तो अडूसा के 10-20 ताजे पत्रों का रस सुबह-शाम सेवन कराते रहना चाहिए।

श्वासरोग में इसके पत्र, सम भाग हरड़ तथा काली द्राक्षा मिलाकर क्वाथ पिलाने से या अडूसा के पत्रों के रस में अदरख एवं शहद मिलाकर सेवन कराने से सांस रोग में लाभ होता है; या सोंठ के क्वाथ में पत्रों को उबालकर ठंडा कर इसमें शहद मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।

कृमिरोग में – इसके पत्रों के रस में शहद मिलाकर पिलाने से कृमिनाश होकर बाहर निकल जाते हैं, चर्मरोग (खाज, खुजली, दद्रु में) इसके 20 पत्रों में दस ग्राम हल्दी को गोमूत्र में पीसकर उस पर लेप करने से इन रोगों में फायदा होता है।

वमन में – इसके पत्रों के रस में शहद या नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से फायदा होता है।

बुखार में – कफ बुखार में इसके पत्र, गिलोय, तुलसी तथा मोथा का क्वाथ बनाकर देना चाहिए।

कामला में इसके पत्रों तथा पुष्पों का रस मधु के साथ देना चाहिए, या दो ग्राम लींडी पीपर का चूर्ण, दो चम्मच घृतकुमारी का रस तथा चार चम्मच अडूसा के पत्रों का रस-इन सबको मिलाकर पिला देना चाहिए।

मूत्रघात में – गन्ने के रस अथवा काली द्राक्षा के क्वाथ के अडूसा के पत्रों का रस दो चम्मच मिलाकर पिलाना चाहिए। या इसके पत्रों या मूल (अडूसा) का क्वाथ पिलाना चाहिए।

जुकाम (प्रतिश्याय) में- इसके पत्रों के दो चम्मच रस में एक चम्मच तुलसी के पत्रों का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

मात्रा- पत्रों का ताजा रस-10-20 मि.ली. । फूल का ताजा रस-10-20 ग्राम पंचांग चूर्ण-10-20 ग्राम। मूल का क्वाथ-20-80 मि.ली.।

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