अरहर (Pigeonpea)
प्रचलित नाम- तुर, तुवर, अरहर ।
उपयोगी अंग- दाल, छिलका, लकड़ी ।
गुण- फैबेलेस।
कुल- फैबेसी ।
परिचय- अरहर की दाल को तुवर भी कह सकते हैं। इसमें खनिज, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैल्शियम आदि पर्याप्त मात्रा में मिलता । यह सुगमता से पचने वाली दाल है, अतः रोगी को भी दी जा सकती है; मगर गैस, कब्ज एवं सांस के रोगियों को इसका सेवन न के समान ही करना चाहिए।
परिचय- यह पूर्व-उत्तरी भारत के दलहन की खास फसल है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो दाल का तात्पर्य ही अरहर की दाल है। यह सिर्फ उत्तर प्रदेश में 30 लाख एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में बोई जाती है। इसके लिये नीची और मटियार धरती को छोड़कर सभी प्रकार की भूमियां उपयुक्त हैं। ऊँची दूमट भूमि में, जहाँ जल नहीं भरता, यह फसलं मुख्य रूप से अच्छी होती है। ये बहुधा वर्षा ऋतु के शुरू में और खरीफ की फसलों के साथ मिलाकर बोई जाती है। अरहर के साथ कोदो, बगरी- धान, ज्वार, बाजरा, मूँगफली, तिल आदि मिलाकर बोते हैं। बारिश के अंत में ये फसलें पक जाती हैं और काट ली जाती हैं। इसके पश्चात् जाड़े में अरहर बढ़कर खेत को पूरी तरह भर लेती है तथा रबी की फसलों के साथ मार्च के माह में तैयार हो जाती है। पकने पर इसकी फसल काटकर दाने झाड़ लिए जाते हैं। फसलों के साथ मिलाकर इसका बीज सिर्फ दो सेर प्रति एकड़ के हिसाब से डाला जाता है।
अरहर को बारिश के पहले दो महीनों में यदि निराई व गोराई दो-तीन बार मिल जाये, तो इसका पौधा काफी बढ़ता है और पैदावार भी लगभग दूनी हो जाती है। चने की तरह इसकी जड़ों में भी हवा से नाइट्रोजन इकट्ठा करने की क्षमता होती है। अरहर बोने से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और इसे खुद खाद की जरूरत नहीं होती। इसको पानी की भी अधिक आवश्यकता नहीं होती। जब धान इत्यादि जल की कमी से मर तथा मुर्झा जाते हैं, तब भी अरहर खेत में हरी खड़ी रहती है। दुर्बल अरहर की फसल पर पाले का असर कभी-कभी हो जाता है, मगर अच्छी फसल पर, जो बरसात में गोड़ाई के कारण मोटी हो गई हो, पाले का भी प्रभाव बहुत कम, या नहीं होता।
पीली अरहर की दाल काफी मशहूर है। अन्य किस्म की अरहर की दाल कनपुरिया दाल एवं देसी दाल है भी उत्तम मानी जाती है। दाल के रूप में उपयोग में ली जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का मुख्य स्थान है। यह गर्म और रुक्ष होती है। जिन्हें इसकी प्रकृति की वजह से हानि हो तो वे इसकी दाल को घी में छौंककर खायें, फिर किसी तरह की हानि नहीं होगी।
अरहर के दानों को उबालकर उसकी सब्जी भी बनायी जाती है। अरहर की दाल में इमली अथवा आम की खटाई तथा गर्म मसाले डालने से यह ज्यादा स्वादिष्ट बनती है। अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर सेवन करने से वह वायुकारक नहीं होती। इसकी दाल त्रिदोषनाशक (वात, कफ और पित्त) होने से सभी के लिए उपयुक्त रहती है। अरहर के पौधे की सुकोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध वाले पशुओं को खास तौर से खिलाए जाते हैं। इससे वे अधिक तरोताज़ा बनते हैं और ज्यादा दूध देते हैं।
रंग- इसका रंग पीला तथा लाल होता है।
स्वाद- इसकी दाल खाने में फीकी तथा स्वादिष्ट होती है। स्वभाव- अरहर की प्रकृति गर्म तथा खुश्क होती है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
यह कसैली, रुक्ष, मीठी, शीतल, पंचने में हल्की, मल को न रोकने वाली, वायुउत्पादक, शरीर के भागों को सुंदर बनाने वाली, कफ और रक्त सम्बन्धी विकारों को दूर करने वाली होती है। पीली अरहर की दाल हल्की, तीखी तथा गर्म होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करने वाली (भूख को बढ़ाने वाली) तथा कफ, विष, रक्त की खराबी, खुजली, कोढ़ (सफेद दाग) तथा जठर (भोजन पचाने का भाग) के भीतर मौजूद हानिकारक कीड़ों को दूर करने वाली है।
अरहर की दाल पाचक है और बवासीर, ज्वर और गुल्म रोगों में भी लाभकारी है।
1. अरहर के पत्तों को जलाकर उसकी राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली मिट जाती है।
2. अरहर के पत्तों और दूब (दूर्वा घास) का रस मिलाकर नाक में लेने से आधासीसी दर्द में फायदा होता है।
3. अरहर की दाल को पीसकर, जल मिलाकर पीने से भांग का नशा उतर जाता है; अथवा भांग का नशा हो तो अरहर की दाल को जल में उबालकर या जल में भिगोकर उसका पानी पिलाना चाहिए।
4. अरहर की जड़ को चबाकर खाने से सर्प के विष में लाभ होता है।
5. एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक तथा आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ को मिलाकर सरसों के तेल में डालकर छौंककर पीस लें। इस पाउडर से शरीर पर मालिश करने से पसीना आना बंद हो जाता है। सन्निपात की स्थिति में पसीना आने पर भी यह उपयोग कर सकते हैं।
6. अरहर की दाल छिलकों के साथ पानी में भिगोकर उस जल से कुल्ले करने पर छाले सही हो जाते हैं। यह गर्मी के असर को दूर करती है।
7. ज्यादा पसीना आने की हालत में भुने हुए अरहर के बीजों का बारीक चूर्ण या शंख भस्म को शरीर पर लगायें। अगर रोग पर इस औषधि का कोई प्रभाव न दिख रहा हो तो उसे फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
8. अरहर की दाल को जल में भिगो दें। उसी पानी में बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करें। इसके पश्चात् उसे अंडकोष वृद्धि पर लगायें। सुबह-शाम कुछ दिनों तक ऐसा ही करने से अंडकोष वृद्धि में लाभ होता है।
9. अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दांतों की पीड़ा खत्म होती है।
10. सिर के धब्बों को खुरदरे वस्त्रों से रगड़कर साफ करने के बाद अरहर की दाल पीसकर प्रतिदिन 3 बार इसका प्रयोग करें। इसके दूसरे दिन सरसों का तेल लगाकर धूप में बैठ जाएं और 4 घण्टे पश्चात् फिर से इसे लगायें, इसी तरह कुछ दिनों तक इसका उपयोग करने से बाल फिर से उग आते हैं।
11. अरहर के छिलके का धूम्रपान करने से हिचकी आना रुक जाती है।
12. जीभ में छाले पड़ने तथा जीभ के फटने पर अरहर के मुलायम पत्तों को चबाएं।
13. अरहर की दाल छिलके सहित । गिलास जल में रख दें और इसे पीसकर मस्तक पर लेप करें। इसके बाद सिर को धोकर कंघी करें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से रूसी हमेशा के लिए दूर हो जाएगी।
14. अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर हो जाती है।
15. कान की सूजन होने पर अरहर की दाल को पीसकर लगाने से सूजन उतर जाती है।
16. अरहर के कोमल पत्ते पीसकर लगाने से जख्म भर जाते हैं।
17. अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेहूद लगभग आधा ग्राम, को बारीक पीसकर जल में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही लाभ होता है।
18. स्त्री के स्तनों में दूध ज्यादा उत्पन्न होने पर, अरहर के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके, स्तनों पर लगा देने से दूध की अधिकता रुक जाती है।
19. दाल को पीसकर लेप की तरह स्तनों पर लगाने से स्तनों में आई सूजन खत्म हो जाती है।
20. बेहोशी होने पर आधा घंटे तक अरहर की दाल को एक कप जल में भीगने दें। इसके पश्चात् इस पानी को रोगी की नाक में एक-एक बूंद करके डालें। कुछ देर बाद ही जब मनुष्य होश में आ जाये तो बचे हुए जल को रोगी को पिला दें।
21. शरीर में सूजन वाले हिस्से पर 4 चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस हिस्से की सूजन खत्म हो जाती है।
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