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असालू (Lepidium Sativum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

असालू (Lepidium Sativum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण
असालू (Lepidium Sativum) की उपयोगिता एवं औषधीय गुण

असालू (Lepidum Stivum)

प्रचलित नाम- होलो ।

उपलब्ध स्थान- यह भारतवर्ष में सभी जगह पाया जाता है।

परिचय- इसका पौधा सरसों के पौधे की तरह होता है। इसके पत्ते कटे हुए रहते हैं। इसके पुष्प नीले रंग के होते हैं। इसमें फलियां आती हैं, उन फलियों पर कुछ रुआं-सा उगा रहता है। इसके बीजों में काफी चेप होता है।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

आयुर्वेद – यह औषधि गर्म, कड़वी, पौष्टिक, दूध बढ़ाने वाली, बाजीकरण तथा कामोद्दीपक होती है। यह वात, कफ, अतिसार और त्वचा के रोगों को समाप्त करने वाली है। दुग्धयुक्त असालू अभिघात रोग, चर्मरोग तथा रुधिर विकार को दूर करने वाली होती है ।

यूनानी- इसके बीज और पत्ते गरम, शुष्क, मूत्रनिसारक, विरेचक तथा कामोद्दीपक होते हैं। यकृत रोग, वायु-नलियों के प्रदाह, छाती के दर्द, गठिया तथा आमाशय की पीड़ा में ये लाभजनक हैं। ये मस्तिष्क शक्ति को बढ़ाने वाले और बुद्धिवर्द्धक होती हैं।

असालू के पत्तों या पुष्पों को उबालकर ठण्डा कर लें, छानकर रख लें। सुबह, दोपहर, शाम इस रस के, खाने के आधे घण्टे पूर्व तीन-चार चम्मच पी लें। ऐसा एक सप्ताह तक करने से शरीर के रक्त विकार के सभी रोग जाते रहते हैं।

  1. हिचकी, अतिसार तथा रुधिर के विकार के रोग में यह औषधि काफी लाभदायक होती है। इसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली अपनी स्वाभाविक हालत में आ जाती है।
  2. इसका काढ़ा पिलाने से आमाशय की पीड़ा मिट जाती है। पेटदर्द से सम्बन्धित सभी शिकायतें दूर होती हैं। भूख खुलकर लगती है।
  3. इसकी डालियों को औटाकर पिलाने से सांस और सूखी खांसी मिटती है।
  4. इसका शर्बत बनाकर पिलाने से खूनी बवासीर में फायदा होता है।
  5. इसका काढ़ा बनाकर पिलाने से सारे शरीर में फैला हुआ उपदंश का जहर शान्त हो जाता है।
  6. इसकी जड़ के चूर्ण की फंकी फांकने से बार-बार दस्त की शिकायत दूर होती है तथा अतिसार मिट जाता है।
  7. दाह और खुजली उत्पन्न करने वाले पदार्थों के जहर को उतारने के लिये इसके बीजों का रस निकालकर पिला देना चाहिए।

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