आलूबुखारा (Bokhara)
प्रचलित नाम- आलूबुखारा, आरूक ।
उपयोगी अंग- फल।
परिचय- आलूबुखारे का पेड़ लगभग 4 से 5 मीटर ऊंचा तक होता है। फल को आलूबुखारा कहा जाता है। यह पर्शिया, ग्रीस तथा अरब के निकट के क्षेत्रों में बहुत होता है। हमारे देश में भी में आलूबुखारा अब उत्पन्न होने लगा है। आलूबुखारे का रंग ऊपर से मुनक्के की तरह और अन्दर से पीला होता है। पत्तों के भेद के अनुसार आलूबुखारे की 4 जातियां होती हैं। ज्यादातर यह बुखारा की तरफ से यहां आता है, इसलिए इसे आलूबुखारा कहते हैं। इसके बीज बादाम के बीज की तरह के परन्तु कुछ छोटे होते हैं। यह फल आकार में दीर्घ वर्तुलाकार होकर एक तरफ फूला हुआ होता है। अच्छी प्रकार पकने पर यह फल खट्टा, मीठा, रुचिकर और शरीर के लिए लाभदायक होता है, मगर इसके फलों को ज्यादा खाने से वायु रोग और दस्त हो जाते हैं।
रंग- आलूबुखारा लाली लिए हुए पीले रंग का होता है।
स्वाद- आलूबुखारा फीका, खट्टा तथा मीठा होता है।
परिचय- यह एक फल है जो बलख, बुखारे में पैदा होता है।
स्वभाव- आलूबुखारा शीतल प्रकृति का होता है।
हानिकारक – इसकी अधिकता दिमाग के लिए हानिकारक हो सकती है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
स्वभाव को कोमल रखता है, आंतों में चिकनाहट उत्पन्न करता है, पित्त, बुखार और रक्त ज्वर में लाभदायक है, शरीर की खुजली को दूर करता है, प्यास को रोकता है।
खट्टा होने पर भी खांसी में हानि नहीं करता। प्रमेह, गुल्म तथा बवासीर को नष्ट करने वाला होता है। यह ग्राही, फीका, मलस्तंभक, गर्म प्रकृति, कफपित्तनाशक, पाचक, खट्टा, मीठा, मुखप्रिय तथा मुख को साफ़ करने वाला होता है। गुल्म, मेह, बवासीर तथा रक्तवात का नाश करने वाला होता है।
पकने पर यह शहद, पित्तकर, उष्ण, रुचिकर, धातु को बढ़ाने वाला और प्रिय होता है। मेह, बुखार तथा वायु का नाश भी करता है।
1. आलूबुखारे को मुंह में रखने से प्यास कम लगती है तथा गले का सूखना बन्द हो जाता है।
2. आलूबुखारे को पानी में घिसकर पीने से पेट साफ हो जाता है
3. आलूबुखारे को पीसकर नींबू के रस में मिलाकर उसमें कालीमिर्च, जीरा, सोंठ, कालानमक, सेंधानमक, धनिया, अजवायन समान मात्रा में मिलाकर चटनी की तरह बनाकर सेवन करने से उल्टी आना बन्द हो जाती है। पके हुए आलूबुखारे के रस को पीने से भी उल्टी आना बन्द हो जाती है।
4. आलूबुखारा खाने से कभी कब्ज नहीं रहता।
5. आलूबुखारे को खाने से दस्त का आना भी बन्द जाता है; क्योंकि यह मल को रोक देता है और कब्ज को मिटा देता है।
6. आलूबुखारे को जल में थोड़ी देर रखने के पश्चात् उसे मसलकर रख दें। इसे छानकर सेंधा नमक मिलाकर पीने से लू समाप्त हो जाती है।
7. आलूबुखारे का रस 50 ग्राम से 100 ग्राम तक या काढ़ा 20 से 40 ग्राम तक सुबह-शाम पीना पित्त को शांत रखता है
8. आलूबुखारे की चटनी पीलिया रोग में काफी लाभकारी है।
9. आलूबुखारे का रस निकालकर दो गिलास रस रोजाना सुबह-शाम पीने से खून की कमी की वजह से होने वाला रक्तचाप ठीक हो जाता है।
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