कंकुष्ठ (Garcinia Hanburi)
प्रचलित नाम- कंकुष्ठ।
उपलब्ध स्थान- हिमालय की तहलटी के ऊपरी भाग में कंकुष्ठ उत्पन्न होता है।
परिचय- इसकी दो जातियाँ होती हैं- एक नलिकाकार तथा दूसरी रेणुकाकार। नलिका कंकुष्ठ पीला, भारी तथा स्निग्ध होता है, यह उत्तम होता है। रेणुका कंकुष्ठ वजन में हल्का, सत्व रहित और कालापन लिए हुए होता है, यह निकृष्ट समझा जाता है। कुछ व्यक्ति, तुरन्त के जन्मे हुए हाथी के बच्चे मल को, जो कि काले और पीले रंग का रहता है, उसे कंकुष्ठ कहते हैं। कुछ मनुष्य घोड़े के बच्चे की नाल को कंकुष्ठ कहते हैं, जो कि हल्के पीले रंग की तथा अधिक रेचक होती है। मगर ये दोनों ही धारणाएं अनुचित हैं। कंकुष्ठ रस तिक्त, कडुआ, उष्णवीर्य, तीव्र रेचक और व्रण, उदावर्त, शूल, गुल्म, प्लीहा में बढ़ोत्तरी और अर्श का नाश करने वाला होता है।
यह एक विवादास्पद औषधि है। असली कंकुष्ठ कौन-सा है, यह आज समझना भी कठिन है। फिर भी कुछ वैद्यकों का मत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। उनके मुताबिक यह ‘गमबोगे’ नामक वृक्ष का गोंद है, जिसे राल के मिश्रण से बनाया जाता है। यह चीन, बर्मा, भारतवर्ष और श्रीलंका में उत्पन्न होता है।
इस पेड़ की कोमल शाखा और पत्तों को तोड़ने से उसमें उजला पीले रंग का दूध निकलता है। इसको बांस की नली में संग्रह करके सुखा दिया जाता है।
यह दो तरह का होता है-एक नलिकाकार और दूसरा पिण्डाकार। नलिकाकार को पाइप गेम्बोज और पिंडाकार को केक गम्बोज कहते हैं। यह कठिन, उजले, पीले रंग का, गन्ध रहित और आग में जलने वाला होता है।
गुण- यह तीव्र रेचक और कृमिनाशक होता है। इससे वमन, घबराहट और पेट में वेदना होती है। किसी क्षार के साथ मिलाकर देने से यह पेट के दर्द को दूर कर देता है। रजस्वला औरत और जिनके आमाशय में दाह हो, उसके लिए यह नुकसानदायक होता है।
आयुर्वेदिक मत- ‘रसरत्नसमुच्चय’ के मतानुसार कंकुष्ठ का रस तिक्त, कडुवा, उष्णवीर्य, तीव्र रेचक तथा व्रण, उदावर्त, शूल, गुल्म, प्लीहावृद्धि और अर्श का नाश करने वाला होता है। एक जौ के बराबर मात्रा लेने से यह कब्जियत को दूर करता है। इसका जुलाब देने से आमज्चर का जल्दी नाश होता है। अगर इसके अधिक उपयोग से उपद्रव हो तो बबूल की जड़ के क्वाथ में जीरा और सुहागा देने से इसके उपद्रव शान्त होते हैं।
यूनानी- यह आमाशय और यकृत के सभी दोषों को वमन और विरेचन के द्वारा शुद्ध कर देता है। जलोदर, कामला, पक्षाघात, अर्दित, आक्षेप, श्वांस और खांसी में भी यह फायदा पहुँचाता है। इसको गुलकन्द और बादाम के तेल के साथ मिलाकर देने से इसकी उग्रता कम हो जाती है। इसके पत्तों को पीसकर, उनका रस निकालकर सेवन किया जाता है। सेवन के लिए 5-10 बूंदें ही काफी रहती हैं। इसके सेवन से कब्ज समाप्त हो जाता है।
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