कपूर (Camphor)
प्रचलित नाम – कपूर ।
उपलब्ध स्थान – कपूर के वृक्ष चीन और जापान देश में ज्यादातर उत्पन्न होते हैं।
परिचय – इस पेड़ की गिनती तज की सुगन्ध के वृक्षों को जाति में ही होती है। इसकी छाल ऊपर से खुरदरी और अंदर से चिकनी होती है। इस वृक्ष पर मौल आम की तरह आते हैं और उन पर मटर की तरह फल लगते हैं। इनके बीजों में कपूर के समान सुगंध आती है। इस पेड़ की छाल के गोदने । से एक तरह का दूध निकलता है। उसी दूध से कपूर तैयार किया जाता है।
विशेष – इस वृक्ष के अलावा और भी कई प्रकार के पेड़ों से कपूर प्राप्त किया जाता है। भारतवर्ष में केले के झाड़ से उत्पन्न होने वाला कपूर उत्तम माना गया है। दस्तरूल अतब्बा में लिखा है कि जो कपूर केले के तने से निकलता है वह निहायत सफेद तथा उत्तम होता है, उसके बड़े-बड़े और चौड़े टुकड़े होते हैं, और जो पत्तों से निकलता है, वह उससे दुर्बल होता है तथा जो जड़ में से निकलता है, वह खराब और बालू रेत की भांति होता है। कपूर में यह प्राकृतिक गुण होता है कि इसकी सुगंध जीवाणुओं और विषाणुओं का नाश कर देता है। इसे कीमती कपड़ों के बीच में रखकर कीड़ों से वस्त्र की रक्षा की जाती है। कपूर के वृक्ष का कपूर ही औषधि में प्रयोग होता है।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेद – कपूर कड़वा, सुगन्धित, ठण्डा, हल्का, तथा तृषा, मुख शोष (विरसता) और अरुचि को दूर करने वाला होता है। कपूर शीतल, वीर्यजनक, आंखों के लिए हितकारी, हल्का, सुगन्धित, मधुर और कड़वा होता है। यह कफ, पित्त, विष, दाह, तृषा, अरुचि, मेद तथा दुर्गन्ध का नाश करता है। कपूर क्वाथ पक्व व अपक्व के भेद से दो प्रकार का होता है। झाड़ के रस को पकाकर जो कपूर बनाया जाता है, उसे पक्व कहते हैं तथा जो बिना पकाए हुए छाल के दूध से बनता है, उसे अपक्य कहा जाता है। पकाये हुए कपूर से बिना पकाया हुआ कपूर बहुत साफ और बढ़िया होता है। इसकी कीमत भी काफी अधिक होती है। कई लोगों के मत से इस बिना पकाए हुए कपूर को ही ब्रास अथवा भीमसेनी कपूर कहते हैं। कपूर कई तरह का होता है। उसमें भीमसेनी कपूर, हिमकपूर, उदयभास्कर कपूर, चीनिया शंकरावास कपूर, कपूर इत्यादि भेद विशेष तौर से प्रसिद्ध हैं।
यूनानी- यह सर्द तथा खुश्क है। मगर कुछ यूनानी हकीमों के मतानुसार इसमें कुछ गर्मी की तासीर भी होती है। ‘हकीम गिलानी’ के मतानुसार, जो कपूर निहायत खालिस और स्वच्छ होता है, जिसको हिन्दू लोग भीमसेनी कहते हैं, यह काफी गर्म होता है। कुछ लोगों की सलाह है कि जब तक कपूर मैदे में रहता है, तब तक सर्द रहता है और जब वह जिगर की ओर जाता है, तब गर्म हो जाता है।
1. कपूर दिल और मस्तिष्क को शक्ति देने वाला तथा क्षय, जीर्णज्वर, निमोनिया, अतिसार और फेफड़े के घाव को लाभ पहुँचाता है। यह जिगर, गुर्दे और पेशाब की सोजिश (सूजन) में फायदा पहुँचाता है। चर्म रोगों के ऊपर भी इसकी क्रिया काफी लाभदायक होती है। जहरीले और फैलने वाले फोड़े-फुन्सियों को इसके प्रयोग से बड़ा लाभ पहुँचाता है। नकसीर का खून बंद करने के लिए यह काफी लाभदायक है। कपूर के भीतर कृमिनाशक गुण भी बहुत अच्छी संख्या में मौजूद हैं। इसकी खुशबू से रोगोत्पादक कीड़े मर जाते हैं और खराब हवा स्वच्छा हो जाती है। हैजे की बीमारी को खत्म करने के लिये यह औषधि अपना प्रधान अस्तित्व रखती है।
2. यह रक्त में मिलकर सब अंगों की बढ़ी और घटी हुई शक्ति को सुव्यवस्थित कर देता है। धनुर्वात अर्थात् टिटनस रोग में यह बड़ा लाभकारी होता है। इसकी अधिक मात्रा बेहोश करने वाले तेज जहर की तरह होती है। इसके अलावा बुखार, सूजन, दमा, कुकर खांसी, दिल की धड़कन, दिल का फूल जाना, पेशाब की रुकावट नहीं रहना, स्त्रियों का भूतोन्माद (हिस्टोरिया), गठिया, जोड़ों का दर्द, बदन का सड़ना इत्यादि रोगों में भी यह काफी लाभ पहुँचाता है।
3. कपूर वायुनाशक, दीपन, पीवनाशक, रक्त में श्वेत कणों को बढ़ाने वाला, कफनाशक, खाँसी को दूर करने वाला, ज्वरघ्न, पसीना लाने वाला, दाह को मिटाने वाला, कुछ मात्रा में कामोद्दीपक और अधिक मात्रा में कामवासना को समाप्त करने वाला होता है
यह स्तनों में दूध की कमी ठीक कर देता है, दिमाग और मज्जा तन्तुओं को उत्तेजना देता है। दिल के लिये प्रत्यक्ष रूप से उत्तेजक है, तथा रक्तवाहिनियों का संकोचन करता है। अलग-अलग मात्राओं में इसकी क्रियाएं भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। साधारण मात्रा में लेने पर यह पहले पूरे शरीर में सर्वव्यापी उत्तेजना उत्पन्न करता है और उसके पश्चात् उसका अवसादक वेदना नाशक और संकोचन विकास, प्रतिबंधक धर्म दिखलाई देता है। बड़ी तादाद में यह दाहजनक, मादक और विषैला प्रभाव उत्पन्न करने वाला होता है।
4. कपूर का वायुनाशक धर्म आमाशय और आंतों के रोगों में काफी उपयोगी होता है। इसलिए दस्त, वमन, हैजे की पहली अवस्था, पेट का फूलना, और भूतोन्माद की उलटियों में इसका व्यवहार किया जाता है। इन सब रोगों में कपूर का अर्क दिया जाता है, क्योंकि यह शरीर में काफी जल्दी मिल जाता है
5. कफ रोगों में कपूर का प्रयोग काफी लाभदायक होता है। हूपिंग कफ, दमा, श्वासनलिका की जीर्ण सूजन इत्यादि रोगों में कपूर को देने से घबराहट की कमी हो जाती है, खांसी के साथ कफ निकल जाता है और हृदय की शक्ति बढ़ जाती है। दमे के रोगी को कपूर और हींग को एक-एक रत्ती की मात्रा में, शहद के साथ मिलाकर देना चाहिए। बूढ़े लोगों को, श्वासनलिका की जीर्ण सूजन में कपूर को दो रत्ती की मात्रा में देने से अच्छा फायदा होता है।
6. हृदय रोगों में भी कपूर बहुत लाभकारी होता है। इन (हृदय) रोगों में अक्सर पेट के भीतर वायु जमा हो जाती है, जिसकी वजह से हृदय की क्रिया अव्यवस्थित होकर श्वास चलने लग जाता है, ऐसे समय में कपूर को देने से फायदा होता है। हृदय की हर तरह की शिथिलता में कपूर देने से काफी राहत मिलती है। दिमाग की तथा मज्जा तन्तुओं की खराबी से पैदा हुए रोगों में भी कपूर लाभदायक होता है। प्रसूतिका में होने वाले उन्माद, भूतोन्माद, और दूसरे उन्माद रोगों में दो रत्ती की मात्रा में दिन में तीन बार कपूर देना चाहिए।
7. कपूर तथा नरकचूर एक-एक तोला लेकर पीस लें, फिर इसमें तीन तोला गुड़ मिलाकर वस्त्र या रुई के फोए पर मलहम की तरह फैला लें और उस फोए या कपड़े के बीच में एक छेद करें और उसको बन्द फोड़े पर चिपका दें। इस प्रयोग से 2-3 दिन में बन्द फोड़ा फूटकर उस छेद के मार्ग से होकर निकल जाता है
8. दो रत्ती कपूर और दो रत्ती हींग की गोली बनाकर दमे के दौरे के वक्त हर दूसरे-तीसरे घंटे में देने से दौरा रुक जाता है। यदि इस प्रयोग के साथ रोगी की छाती पर तारपीन के तेल की मालिश भी की जाए तो अधिक लाभ होता है।
9. 2 तोला कपूर को 2 पांव सिरके में गलाकर, उसमें 2 पाव जल मिलाकर एकसार कर लें। इस औषधि से वस्त्र तर करके गठिया, स्नायु पीड़ा और मस्तक पीड़ा के स्थान पर लगातार कपड़ा रखने से पीड़ा दूर हो जाती है।
10. दो रत्ती कपूर में आधी रत्ती अफीम मिलाकर देने से पेशाब करते समय होने वाली सुजाक की पीड़ा समाप्त होती है।
11. दो रत्ती कपूर तथा पाव रत्ती अफीम की गोली बनाकर सोते वक्त लेने से अपने आप वीर्य का स्खलन होगा तथा प्रमेह की शिकायत जाती रहेगी।
12. चेचक में बुखार की तीव्रता से जब रोगी निर्बल व शक्तिहीन हो जाए और प्रलाप करने लगे, उस वक्त डेढ़ रत्ती कपूर और डेढ़ रत्ती हींग की गोली बनाकर हर तीसरे घंटे देनी चाहिए, साथ ही पांव के तलवों और हृदय पर तारपीन के तेल की मालिश करनी चाहिए अथवा पिसी राई का प्लास्टर (लेप) लगाना चाहिए। अगर इस प्रयोग से सिरदर्द या सिर की जलन उत्पन्न हो तो इस प्रयोग को बंद कर देना चाहिए। इस प्रयोग को करते समय बहुत सतर्कता रखने की जरूरत है।
13. कागज की भोंगली में कपूर को रखकर श्वांस के साथ उसकी धूनी देने से जुकाम ठीक हो जाता है।
14. कुनैन, नौसादर के फूल तथा कपूर की गोली देने से निमोनिया रोग में फायदा होता है। में
15. दांत के गड्ढे में कपूर रखने से दांत की पीड़ा तथा दांत का बिगड़ना बंद हो जाता है।
16. अफीम व कपूर को, राई के तेल में मिलाकर मर्दन करने से मांसपेशियों और रक्त वाहिनी शिराओं की गठिया की प्राचीन पीड़ा मिट जाती है।
17. हैजे में हाथ-पांव ठंडे हो जाने पर स्प्रिट केम्पर अथवा अर्क कपूर देने से फायदा होता है।
18. कपूर को सिरके में पीसकर डंक पर लगाने से बिच्छू, मक्खी तथा बर्रे का जहर उतरता है।
19. बड़ के दूध में कपूर को खरल करके नेत्र में आंजने से आँखों की फूली कट जाती है।
20. कपूर की खोपरे (गिरी) के तेल में मिलाकर मालिश करने से पित्ती में फायदा होता है।
21. कपूर को गुलाबजल में पीसकर नाक में टपकाने से तथा मस्तक पर मालिश करने से नकसीर बंद हो जाती है।
22. माशा कपूर को गुलाब के अर्क में घोटकर पिलाने से संखिया के जहर में लाभ होता है।
23. प्राचीन खांसी के रोग में कपूर बहुत ही लाभदायक है। इसका उपयोग कफनाशक औषधियों के साथ करना चाहिए।
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