कौंच (Cow-Hedge Plant)
प्रचलित नाम- कौंच, केवाच
उपयोगी अंग- मूल, बीज, फली और फली के ऊपर के रोम।
परिचय- यह एक-वर्षीय चकारोही पतली लता की तरह का क्षुप है। पत्ते संयुक्त, त्रिपत्रक, अग्रपत्रक, तिर्यगायताकार, पतले, चिकने, ऊपरी सतह रोमश होते हैं। फूल बैंगनी रंग के मंजरियों में फली दोनों आगे हिस्से पर विपरीत दिशा में टेढ़ी, कुछ फूली हुई होती है। जो सघन रोमों से ढकी हुई, स्पर्श करने से खुजली हो जाती है। इसकी फलियां सेम से कुछ मोटी होती हैं, जिनकी सब्जी बनाकर खाने से चर्मरोगों में फायदा होता है। सब्जी बनाने के लिए फलियों को उबालकर, अलग कर लें, उसके बाद सब्जी बनाएं।
स्वाद – तिक्तरस, मीठा।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
ग्राही, मृदुरेचक, वाजीकरण, मधाबल्य, मूत्रल, उत्तेजक, कृमिघ्न ।
श्वेत प्रदर में, शुक्रदौर्बल्य, पक्षाघात, व्रण, रक्तदोष, आंत्र कृमियों में, यक्ष्मा, श्वासरोग में लाभदायक। इसके बीज का चूर्ण शहद तथा घी में मिलाकर सेवन करते हैं। इसकी जड़ के सेवन से वातनाड़ियों को शक्ति मिलती है। इसकी फली के ऊपर के रोम उत्तम आंत्रकृमि नाशक होते हैं। इसके रोगों को घी, शहद या गुड़ के साथ गोला बनाकर देते हैं। विषूचिका में इसके मूल का फांट बनाकर देने से फायदा होता है।
अतिसार में – (1) इसके मूल का चूर्ण एक तोला पानी के साथ सेवन से पक्वातिसार तथा रक्तातिसार समाप्त होता है (2) इसके मूल से सिद्ध किया हुआ दूध अतिसार से पीड़ित रोगी के लिये लाभदायक है।
बाजीकरण के लिए- इसके बीजों तथा गेहूं को दूध में पकाकर खीर जैसा हो जाने पर, ठंडा करके घी मिलाकर खाना चाहिए। ऊपर से दूध पी लेना चाहिए।
रक्त पित्त में – इसके कोमल फलों (शिम्बी-फली) का शाक अति लाभदायक है। वात व्याधि में इसकी कच्ची फलियों का स्वरस पीने से फायदा होता है।
योनि संकोच के लिए इसके मूल का क्वाथ- इसमें रूई का फाया भिगोकर योनि के भीतर रखने से योनि का संकोच होता है। शुक्रदौर्बल्य व पक्षाघात में कौंचपाक अति लाभदायक है।
मात्रा- बीज का चूर्ण-3-5 ग्राम। रोम-5-10 रत्ती।
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