काला बच्छनाग (Aconitum Ferox)
प्रचलित नाम- बच्छनाग, मीठा विष, सींगिया विष।
उपयोगी अंग- जड़
उपलब्ध स्थान – यह वनस्पति नेपाल के अल्पाइन हिमालय प्रान्त में उत्पन्न होती है।
परिचय – इसके पौधे का प्रकांड सीधा रहता है। इसके पत्ते एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं। ये अखंड रहते हैं इसकी जड़ें गठावदार होती हैं। ये गहरे बादामी रंग की होती हैं। कोई-कोई पीले रंग की भी रहती हैं।
बच्छनाग की करीब 180 जातियों का विवरण आता है। किन्तु 50 से ज्यादा यूरोपियन जातियां और 24 भारतीय जातियों का अभी तक पता लग चुका है, जिनमें असरकारी उपक्षार पाये जाते हैं। इन जातियों में एकोनिटम नेपलेस, एकोनिटम, फेरोक्स, एकोनिटम हैट्रोफिलम (अतीस), एकोनिटम, स्पिकेटम इत्यादि जातियां विशेष रूप से विख्यात हैं।
बच्छनाग की जड़ जाड़े के अन्त में शुरू में, जब तक इस वृक्ष में नये पत्ते नहीं फूटते, तब तक खोद कर सुखा लेते हैं। इसके ताजे पुष्पों की छड़ियां और पत्ते उस समय तोड़ते हैं जब फूल खिलने वाला हो।
काले अथवा तेलिया बच्छनाग की जड़ें ऊदी रंग की होती हैं। इनका आकार गाजर के सदृश होता है। मगर यह बहुत ऊबड़-खाबड़, साधारणतया 2-4 इंच लम्बा होता है। ज्यादा दिनों तक पड़े रहने पर यह काले रंग की हो जाती है। बरसात के दिनों में यह बहुत मीठी और सींग की तरह हो जाती है। इनको हाथ पर मसलने से ऊदी रंग चढ़ जाता है। इनमें काफी उग्र गन्ध होती है। इसका जुबान पर जरा-सा स्पर्श होते ही जबान में जड़ता उत्पन्न हो जाती है तथा बहुत देर तक टिकी रहती है; इसलिये इसकी असली-नकली को परीक्षा करने के लिये इसको जबान पर कभी नहीं लगाना चाहिए।
उपयोगिता एवं औषधीय गुण
आयुर्वेदिक मत – आयुर्वेदिक मत से बच्छनाग अधिक मधुर, गरम, वात-कफ नाशक और कण्ठरोग तथा सन्निपात को करने वाला होता है। यह पित्त और संताप को पैदा करता है। यह प्राणनाशक भी होता है। इस जहर में रुक्ष, उष्ण, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, आशु, व्याधि, निकासी ‘विशट’ लघु और अपाकी ये 10 धर्म रहते हैं। यह अपने रुक्ष गुण से वायु को कुपित करता है। उष्ण गुण से पित्त तथा रक्त को कुपित करता है। से तीक्ष्ण गुण से बुद्धि को भ्रमित करता है और मर्म बन्धन को छिन्न-भिन्न कर देता है। सूक्ष्म गुण से मनुष्य शरीर के सब अवयवों में हठपूर्वक प्रवेश करके उनकी क्रियाओं को प्रकाश में लाता है। आशु गुण से अधिक शीघ्र अपने प्रभाव को घोषित करता है। व्यवहारी गुण से प्रकृति को नष्ट करता है। विकासी गुण से शारीरिक वातादि दोष, रसादि धातु और मूत्रादि, मल के समूह को फैलाता है। विशद गुण के द्वारा अत्यन्त दस्तों को लाता है। लघु गुण के कारण बहुत कठिनाई से वश में आता है। अपाकी गुण के कारण बहुत दुर्जल और काफी दीर्घकाल का कारण होता है। इसकी औषधि को बहुत थोड़ी मात्रा में सेवन करें। ज्यादा मात्रा में सेवन करने से यह नुकसानदेय हो सकता है। विरेचक गुण की वजह से यह मल को ढीला कर दस्त कर सकता है।
किन्तु शुद्ध किया हुआ और विधिपूर्वक सेवन किया हुआ विष रसायन, बलकारक, वात, श्लेष्म, कुष्ठ, वातरक्त, अग्निमांद्य, सांस, खांसी, प्लीहा, जलोदर, गुल्म, पांडु और व्रण का नाश करता है। युक्तिपूर्वक सेवन करने से यह शक्तिदायक, रसायन, कामोद्दीपक तथा त्रिदोषजन्य रोगों को समाप्त करने वाला होता है।
बच्छनाग को शुद्ध करने की विधि – सींगिया विष तथा बच्छनाग विष को 3 दिन तक गोमूत्र में पड़ा रखें, किन्तु रोज पुराने गोमूत्र को निकालकर उसमें नया गोमूत्र डालते रहें। तीसरे दिन उस बच्छनाग को • गोमूत्र में औटाकर निकाल लें और उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके धूप में सुखा लेना चाहिए। इस क्रिया से बच्छनाग शुद्ध हो जाता है। बच्छनाग को शुद्ध करने से उसका जहरीला प्रभाव कम हो जाता है और उसका अवसादक गुण कम होकर उसमें उत्तेजक गुण उत्पन्न हो जाता है।
यूनानी मत – यूनानी मत से बच्छनाग गरम और खुश्क रहता है। शुद्ध किया हुआ बच्छनाग काफी थोड़ी मात्रा में देने से कुष्ठ और सफेद दाग में लाभ पहुँचता है। यह कामशक्ति को बढ़ाता है, आमाशय, यकृत और मस्तिष्क को शक्ति देता है, खून को स्वच्छ करता है, कफ को निकाल देता है, वायु को बिखेरता है, अद्धवायु, जलोदर, जुबान का तुतलाना, दांतों का दर्द और नेत्र की बीमारियों में लाभदायक है। परन्तु इन सब कामों में इसका उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए। कफ की पुरानी बीमारी और खांसी में भी यह लाभ पहुँचाता है। इसका लेप घाव को लाभ पहुँचाता है। तेल बनाने के लिए इसकी छाल को तेल और पानी समान भाग लेकर पकाएं। जब पानी जल जाए, तेल बचा रहे तो उसे उतारकर कर ठण्डा कर लें। छाल को अलग कर तेल को मालिश के उपयोग में लाना चाहिए।
गठिया – गठिया और छोटे जोड़ों की सूजन पर बच्छनाग के तेल की मालिश करने से गठिया तथा छोटे जोड़ों की सूजन मिट जाती है।
मूत्रकृच्छ्र – शुद्ध बच्छनाग को आधे चावल की मात्रा में देने से मूत्रकृच्छ्र मिट जाता है।
मधुप्रमेह – 1 तोला शुद्ध बंच्छनाग में 7 तोला अरारोट मिलाकर उसमें से आधी रत्ती से 1 रत्ती तक की मात्रा में देने से मूत्रातिसार, मधुप्रमेह, पक्षाघात तथा कुष्ठ रोग में फायदा होता है।
रसायन – बच्छनाग में समान मात्रा सुहागा मिलाकर थोड़ी मात्रा में जो इसको खाने की आदत डाल लेता है, वह दीर्घायु होता है। उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ शक्तिशाली हो जाती हैं। शरीर में तेज तथा जोश बना रहता है।
उसकी कामशक्ति हमेशा जाग्रत रहती है और हृदय की गति काफी धीमी और व्यवस्थित रहती है। बुखार, मंदाग्नि, गठिया, फोड़े, फुन्सी इत्यदि रोगों से बचा रहता है।
कण्ठमाला – बच्छनाग को नींबू के रस में घोटकर लेप कर देने से कण्ठमाला में फायदा होता है।
बिच्छू का विष – बच्छनाग का लेप करने से और इसको अल्प मात्रा में खिलाने से बिच्छू का जहर उतरता है।
बादी का दर्द – कुटे हुए बच्छनाग को अलसी के आधा सेर तेल में औटाकर उस तेल की मालिश करने से हर प्रकार के बादी के दर्द में आराम मिलता है। गठिया, वात की वजह से जोड़ों के दर्द में भी इसकी मालिश लाभकारी है।
निमोनिया – दूधिया बच्छनाग को बहुत थोड़ी मात्रा में देने से निमोनिया में फायदा होता है। परन्तु शर्त यह है कि जब बीमारी आरम्भ हो और बुखार तेज हो, तब इसको देना चाहिए। इसके अलावा गठिया, गृध्रसी और धनुर्वात में भी इससे बहुत फायदा होता है।
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