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कुचला के फायदे एंव उपयोग | Nux-Vomica Tree benefits and uses in Hindi

कुचला के फायदे एंव उपयोग | Nux-Vomica Tree benefits and uses in Hindi
कुचला के फायदे एंव उपयोग | Nux-Vomica Tree benefits and uses in Hindi

कुचला (Nux-Vomica Tree)

प्रचलित नाम – कपीलु, कुचला।

उपयोगी अंग- पत्र, छाल, काष्ठ तथा बीज ।

परिचय- यह एक ऊँचा वृक्ष होता है। इसके पत्ते चिकने, चमकदार, पाँच प्रधान शिराओं युक्त होते हैं। फल नारंगी रंग के तथा फूल छोटे तथा कद में गोल रहते हैं।

विशेष- इसका उपयोग औषधि में ही करें। बगैर औषधि रूप में प्रयोग हानिकर सिद्ध होता है।

स्वाद- तीखा।

उपयोग- स्त्री रोग विकारों में, मुख (चेहरा) पक्षाघात, आमवात, कटिशूल, कास, श्वासरोग, अरुचि में, विबंध और हृदयबल्य है। बीजों का उपयोग- शोधन करके बीजों को सात रोज तक गोमूत्र में रखकर छिलके निकाल कर, गाय के दूध में उबालकर तथा गाय के घी में भूनकर, चूर्ण बनाकर प्रयोग किया जाता है। कुपचन व दर्द में इस चूर्ण के सेवन से भूख बढ़ती है एवं पाचक रस ज्यादा मात्रा में बनता है। इसके सेवन से नपुंसकता नहीं होती। इसके चूर्ण के सेवन से दिल तथा श्वसन संस्थान के दौर्बल्य में इनको बल मिलता है।

कृमियुक्त व्रण में- पत्तों को पीसकर पुल्टिस बनाकर बांधने से लाभ होता है। इसके चूर्ण सेवन से भूख बढ़ जाती है तथा पाचक रसों की बढ़ोत्तरी होती है। वार्धक्य में तथा वाजीकरण के लिये इसके चूर्ण में लौह तथा काली मिर्च मिलाकर सेवन से फायदा होता है । विसूचिका में इसके मूल की छाल को नींबू के रस में के घोटकर बनाई गई गोली का सेवन करने से फायदा होता है। अग्निमांद्य तथा अजीर्णता में भोजन के पश्चात् इसके चूर्ण की फंकी लेने से लाभ होता है। विसूचिका और प्रवाहिका में इसकी लकड़ी का रस (यह ताजी हरी सीधी लकड़ी के दोनों किनारों पर से टपकता हुआ रस पात्र में इकट्ठा हो जाता है) की कुछ बूंदें देने से अधिक लाभ होता है। संधिवात में इसके ताजे बीजों में से निकाला गया तेल लगाने से फायदा होता है। यह ज्ञान तन्तुओं को शक्ति देने के रूप में, ज्वर के चढ़ने-उतरने में, प्लीहा वृद्धि एवं नपुंसकता में कीमती औषधि है। अफीम खाने की आदत छुड़ाने के लिये कुचला खिलाया जाता है। इसके कच्चे फल ग्राही, तीखे, वातकर, लघु एवं ठण्डे होते हैं। पके हुए फल विष, गुरु, पाक, मधुर तथा कफ, वात, प्रमेह, पित्त और रक्त विकार नाशक होते हैं। मलेरिया, अजीर्णता, शूल तथा मंदाग्नि में इसके बीजों को टूटे बिना तल कर प्रयोग किया जाता है। (इससे बीज शुद्ध हो जाते हैं) इस शुद्धिकरण के बाद इनका चूर्ण बनाकर, मधु के साथ (1-2 रती) सेवन करने से फायदा होता है। शीत ज्वर, नेत्र-शूल तथा संग्रहणी में इस शुद्ध किये बीजों का चूर्ण तीन हिस्सों में तथा लौंग एक भाग, अदरख के रस में खरल कर रत्ती के आकार की गोलियाँ बनाकर शहद के साथ अरुचि में देने से फायदा होता है। जीर्ण वातरोग (कमरदर्द, पक्षाघात, अंगों की जकडून, पाचन शक्ति की कमजोरी) में शुद्ध किये हुए, इसके बीज का चूर्ण एक से दो रत्ती रोजाना दूध या गुनगुने पानी के साथ थोड़े दिन तक सेवन करने से फायदा होता है। हस्तमैथुन या ज्यादा स्त्री संभोग से वीर्यक्षय होकर शरीर में दुर्बलता आने पर भी उपर्युक्त विधि से इसका सेवन करने पर लाभ होता है। इसके कांड की छाल का लेप वेदनास्थापन है। इसके बीज सभी इन्द्रियों की क्रियाओं की गति बढ़ाते हैं, लेकिन ज्ञानतंतुओं पर . इसका प्रभाव अधिक होता है। अगर तम्बाकू के अधिक सेवन से दृष्टिमांद्यता आ गयी है तो इसमें कुचला का अर्क, मीठे सोंठ के साथ देने से फायदा होता है। मानसिक थकान के कारण नींद न आती हो तो कुचला के सेवन से फायदा होता है। श्वसनी शोथ तथा श्वासरोग में उत्तेजक कफघ्न औषधि के साथ कुचला का सेवन लाभदायक होता है।

मात्रा- बीज चूर्ण एक रत्ती से आधा रत्ती (एक फल संपूर्ण बीज को घी में भूनकर सरौते से काट-काट कर रोजाना खाने से) हर तरह का कब्ज़ मिटता है। भूख खुल जाती है। वीर्य दौर्बल्यता की पूर्ति होती है। इस औषधि की होम्योपैथ में बहुत ज्यादा मान्यता प्राप्त है। होम्योपैथ में इसे नक्स वोमिका कहते हैं।

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