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वायविडङ्ग (Barbreng) के फायदे एंव औषधीय गुण

वायविडङ्ग (Barbreng) के फायदे एंव औषधीय गुण
वायविडङ्ग (Barbreng) के फायदे एंव औषधीय गुण

वायविडङ्ग (Barbreng)

प्रचलित नाम – वायविडङ्ग ।

उपयोगी अंग- फल ।

परिचय- यह एक झाड़ीनुमा एवं जल्दी 3. बढ़ने वाला पौधा होता है, इसकी छाल खुरदरी रहती है, इसकी टहनियाँ लम्बी, पतली और लचीली एवं लम्बें पर्व वाली रहती हैं। इसकी पत्तियां लचीली एवं लम्बे पर्व वाली होती हैं। पत्ते तीक्ष्णाग्र, ऊपर से चमकदार जबकि निचली सतह रजाभ, सूक्ष्म ग्रंथियों युक्त होते हैं। फूल श्वेत या हल्के रंग के और फल गोलाकार पकने पर लाल रंग के दिखाई देते हैं।

स्वाद- कटु ।

उपयोगिता एवं औषधीय गुण

रुचिकर, दीपन, रसायन नाड़ी बल्य, रक्तशोधन, कृमिघ्न । स्फीतिकृमि में, चर्मरोग में, अग्निमांद्य, कुष्ठरोग, सामान्य दौर्बल्य दांत का दर्द, कास, कुपचन, शूल, श्वासरोग, आध्मान, अपस्मार, हृदयरोग में लाभदायक। वायविडङ्ग का प्रयोग अब से पहले अनेक औषधियों के साथ मिलाकर करने को लिखा गया है। यह अन्य औषधियों के साथ मिलाकर उसके असर को बढ़ा देता है। कृमिरोग में इसके फल का चूर्ण मधु के साथ सेवन से लाभ। अरुचि तथा ज्वर में फल का चूर्ण शहद के साथ गोली बनाकर सेवन से लाभ। इसके अलावा यह गोली खांसी तथा श्वासरोग में भी लाभदायक। रसायन के रूप में विडंग एवं यष्टिमधु का समभाग चूर्ण, ठण्डे जल से पीना चाहिए। इस प्रकार नियमित सुबह-शाम चौथाई तोला चूर्ण शीतल जल के साथ एक मास तक लेना चाहिए। इस बीच आहार में सिर्फ चावल, घी-मूँग तथा आँवले का सेवन करना चाहिए। प्रातः एवं सायं काल का भोजन इसी तरह लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार का भोजन नहीं लेना चाहिए। इससे अर्श में फायदा होता हैं, कृमि मर जाते हैं, स्मरण शक्ति की वृद्धि होती है। इस प्रकार का प्रयोग एक-एक मास तक करने से सौ साल की आयु बढ़ती है। वायविडङ्ग का प्रयोग पेट के समस्त विकारों पर काबू पाने में होता है। इसका रोजाना प्रयोग निरोगी बनाता है। शरीर में किसी भी रोग को पनपने नहीं देता।

“वैद्याचार्य झण्डु भट्ट जी ने इस औषधि का नाम ‘वसंत व्रत’ रखा था। अर्थावमेद (आधा शीशी-शिरःशूल) में वायविडङ्ग और काले तिल का सम मात्रा में चूर्ण का नस्य देना चाहिए। कामला में विडंग एवं पिप्पली दोनों को समभाग लेकर पानी में पीसकर नस्य तथा अंजन करना चाहिए।

सर्पविष में वायविडंङ्ग मूल को तण्डुलोदक में घिसकर पिला देना चाहिए। इससे सभी तरह के भीषण सर्पों का जहर उतर जाता है। कृमिघ्न औषधियों में वायविडंङ्ग उत्तम है। यह एक दिव्य औषिध है, इसके सेवन से पाचन क्रिया सुधरती है, इसी वजह से शिशुओं को विडंग का यवकुटूट चूर्ण दूध में मिलाकर, उबालकर पिलाना लाभदायक होता है

कृमिरोग में इसका चूर्ण गुड़ मिलाकर सेवन से या शहद मिलाकर सेवन से कृमि नाश होता है शिशु के निरोगी होने के लिए शिशु एक महीने का हो जाए तब तक एक विडंग का चूर्ण शहद के साथ देना चाहिए। इस प्रकार प्रति माह एक-एक विडंग बढाकर खिलाना चाहिए, इससे बच्चे को कभी कोई रोग नहीं होगा। • अरुचि तथा बुखार में विडंग तथा मधु की गोली बनाकर मुख में रखनी चाहिए। जिससे अरुचि तथा जीर्ण ज्वर का नाश जल्दी हो जाता है।

मात्रा – 5-10 ग्राम

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