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लघु आकार तन्तु एवं दीर्घाकार तन्तु में अन्तर

लघु आकार तन्तु एवं दीर्घाकार तन्तु में अन्तर
लघु आकार तन्तु एवं दीर्घाकार तन्तु में अन्तर

लघु आकार तन्तु एवं दीर्घाकार तन्तु में अन्तर संतुष्ट कीजिए।

लम्बाई के आधार पर तन्तुओं को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. दीर्घाकार
  2. लघु आकार

1. दीर्घाकार तन्तु

दीर्घाकार तन्तु वे तन्तु होते हैं जो बहुत लम्बे होते हैं अर्थात् ये तन्तु मीटरों के द्वारा नापे जाते हैं। इन तन्तुओं को काटकर छोटे-छोटे तन्तुओं के रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मौलिक रूप में भी प्रयोग में लाया जा सकता है। प्रोटीन तन्तुओं में से रेशम तथा सभी कृत्रिम तन्तु (Artificial Fibres) दीर्घाकार तन्तु कहलाते हैं। ये तन्तु रस्सी के रूप में बटकर अथवा बिना बटे भी प्रयोग में लाये जा सकते हैं। इस प्रकार के तन्तुओं को दीर्घाकार ‘टो’ तन्तु कहते हैं। यह तन्तु दो प्रकार के होते हैं-

  1. एकरेशीय तन्तु
  2. बहुरेशीय तन्तु।

(A) एकरेशीय तन्तु- एकरेशीय तन्तु केवल एक मजबूत तथा मुलायम तन्तु (Fibres) से बना होता है। सीट के ढकने तथा फर्नीचर इत्यादि पर वस्त्रों को चढ़ाने के लिए इस प्रकार के तन्तुओं को प्रयोग में लाकर बुना जाता है।

( B ) बहुरेशीय तन्तु– एकरेशीय तन्तु के विपरीत बहुरेशीय तन्तुओं में बहुत से दीर्घाकार (Filaments) तन्तुओं (Fibres) को एक साथ बटकर रस्सी के रूप में एक लम्बा सा धागा तैयार किया जाता है। इस प्रकार से बनाये गये धागे चमकदार, आकर्षक, सुन्दर तथा कोमल होते हैं तथा इनके द्वारा ब्लाउज, लुंगी तथा रेशम से बनाई गई पोशाक के प्रयोग में लाये। जाते हैं। आवश्यकतानुसार इन तन्तुओं की संख्या, आकार तथा ऐंठन में कमी अथवा वृद्धि की जा सकती है।

2. लघु आकार तन्तु (स्टेपल तन्तु)

लघु आकार तन्तु वे तन्तु होते हैं जिनकी लम्बाई 1½” से 18″ तक होती है तथा इन प्राकृतिक तथा कृत्रिम तन्तुओं को इंच में नापा जाता है। रेशम के अतिरिक्त सभी प्राकृतिक तन्तु लघु आकार तन्तु हैं। इन्हें कातकर सूत के रूप में तैयार किया जाता है।

सभी प्रकार के तन्तुओं के द्वारा वस्त्रों का निर्माण नहीं किया जा सकता केवल कुछ ही तन्तु ऐसे होते हैं जिनके द्वारा वस्त्र बनाये जाते हैं। वस्त्र बनाने वाले तन्तुओं में निम्नलिखित गुणों का होना परमावश्यक है-

1. जिस तन्तु से कपड़ा बुनना हो वे लम्बे होने चाहिए क्योंकि लम्बा तन्तु होने में उसको बुनने में असुविधा नहीं होती। ऊन तथा कपास की अपेक्षा रेशम का तन्तु आकार में लम्बा अधिक होता है इसलिए ऐसे तन्तुओं के वस्त्रों का निर्माण करने में असुविधा नहीं होती। इसके अतिरिक्त मानवकृत तन्तु भी रेशम के तन्तु के समान लम्बे होते हैं, इनमें भी वस्त्र आसानी से बने जा सकते हैं। आवश्यकतानुसार इन तन्तुओं को काटकर छोटा भी किया जा सकता है।

2. तन्तु का दूसरा आवश्यक गुण मजबूती है अर्थात् तन्तु ऐसे होने चाहिए जिससे बनाये गये वस्त्र अधिक मजबूत तथा सुन्दर प्रदर्शित हों। तन्तु मजबूत होने के साथ-साथ ऐसा होना चाहिए कि उसे आसानी से काटा भी जा सके तथा उसे आसानी से धागे के रूप में परिवर्तित किया जा सके जिससे टिकाऊ व मजबूत वस्त्रों का निर्माण हो जिससे वह पर्याप्त समय तक चल सके।

वस्त्र के तन्तुओं की लम्बाई तथा मजबूती वातावरण की नमी पर ही निर्भर करती है। अधिकांश तन्तु ऐसे होते हैं जिन्हें यदि कुछ समय तक पानी में भिगो दिया जाये तो वे हो मजबून जाते हैं। इसके विपरीत कुछ तन्तु ऐसे भी होते हैं जिन्हें अधिक समय यदि पानी में रखा जाये तो उनके तन्तु कमजोर पड़ जाते हैं।

3. लम्बाई तथा मजबूती के अतिरिक्त तन्तु में लचीलापन का पाया जाना परमावश्यक है। धागे में लचीलापन होने के कारण ही उसे एक-दूसरे के ऊपर आसानी से लपेटा जा सकता है। तथा लचीलापन होने के कारण ही वस्त्र आसानी से बुना जा सकता है।

4. वस्त्र का निर्माण करते समय सभी तन्तु ऐसे लेने चाहिए जो आकार में समान हो जिससे उनके द्वारा एक ही आकार (Size) का भजबूत धागा तैयार किया जा सके।

5. तन्तु साफ व सुदृढ़ होना चाहिए जिससे कताई अथवा बुनाई करते समय किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

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